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कृषि दिशा / Crop Diseases / मिर्च की फसल में लगने वाले रोग व कीट, जानिए बचाव के उपयोगी उपाय

मिर्च की फसल में लगने वाले रोग व कीट, जानिए बचाव के उपयोगी उपाय

By: Krishi Disha | Updated at:7 June, 2021 google newsKD Facebook

Diseases in Chilli Crop
मिर्च की फसल में लगने वाले रोग व कीट

मिर्च के रस चूसक कीट

पर्ण जीवी (थ्रिप्स) – थ्रिप्स का वैज्ञानिक नाम सिट्ररोथ्रिटस डोरसेलिस हुड़ है. इस प्रकार के छोटे-छोटे कीड़े, पौधों की पत्तियों तथा अन्य मुलायम भागों से रस चूसते हैं. इन कीटों का आक्रमण पौध रोपाई के 2-3 सप्ताह बाद शुरु हो जाता है. पौधों पर फूल लगने के समय इस रोग का प्रकोप बहुत बढ़ जाता है. इन कीटों का प्रकोप होने पर पौधों की पत्तियां सिकुड़ जाती है और मुरझा कर मुड़ जाती है और नाव के आकार की दिखने लगती है. थ्रिप्स के प्रकोप वाले पौधे देखने में मोज़ेक रोग के जैसे लगते है. इससे पौधों की बृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है जिसके कारण पैदावार बहुत कम होती है. Know About Chilli Farming in Hindi

रोकथाम – थ्रिप प्रकोप मापने के लिए खेत में नीले चिपकने वाले कार्ड 6-8 प्रति एकड़ लगाएं. इस कीट के प्रकोप को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें.

सफेद मक्खी – इस कीट का वैज्ञानिक नाम बेमेसिया टेबेकाई है. इस कीट के शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं. यह शहद जैसा पदार्थ पत्तियों पर छोड़ते हैं जिसकी वजह से पत्तियों के ऊपर दानेदार काले रंग की फंगस जम जाती है. यह पत्ता मरोड़ रोग वाहक होता है.

रोकथाम – इसके प्रभाव को मापने के लिए खेत में पीले चिपकने वाले कार्ड लगाए. इन कार्ड पर ग्रीस और चिपकने वाला तेल लगा होता है. एसेटामिप्रिड 20 एस पी 4 ग्राम प्रति 10 लीटर या ट्राइज़ोफॉस 2.5 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें. Hybrid Varieties of Chilli

यह भी पढ़ेंः  बैंगन की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों की पहचान और रोकथाम के उपाय

माहू – इस कीट का वैज्ञानिक नाम एफिस गोसीपाई ग्लोवर है. यह कीट पत्तियों एवं पौधों तथा अन्य कोमल भागों से रस चूसकर पत्तियों एवं कोमल भागों पर मधुरस स्त्राव करते हैं. जिससे उस जगह सूटी मोल्ड विकसित हो जाती है. जिसकी वजह से फल काले पड़ने लगते है. माहू मोजेक रोग का प्रसार करता है
रोकथाम-

  • कीट की प्रारम्भिक अवस्था में नीमतेल 5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रै करें.
  • डायमिथिएट 30 ईसी या ट्राइजोफॉस 40 ईजी की 30 मि.ली. मात्रा तो 15 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें.
  • कीट के अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में 15 ग्राम एसीफेट या इमीडाक्लोप्रिड 5 एस.एल. की 5 मिली मात्रा 15 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें.
  • फेनप्रोपाथ्रिन 5 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें.
  • फास्फोमिडॉन 85 एस एल 0.3 मिलीलीटर या मैलाथियान 50 ई सी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करें. आवश्यकतानुसार 15 से 20 दिन के बाद फिर छिड़काव करें.

मकड़ी – – इस कीट का वैज्ञानिक नाम हेमीटारसोनेमस लाटस बैंक है. इन कीटों का आकार बहुत छोटा होता है. यह पत्तियों की निचली सतह से रस चूसती है जिसके कारण पत्तियाँ सिकुड़ कर नीचे की ओर मुड़ जाती हैं
रोकथाम- इन कीटों से बचाव के लिए क्लोरफेनापायर 5 मि.ली./लीटर या एवामेक्टिन 1.5 मिली/ लीटर या स्पाइरोमेसिफेन 0.75 मिली/लीटर या वर्टीमेक 0.75 मि.ली. पानी में घोलकर स्प्रे करें.

फल छेदक कीट

सफेद लट- इस तरह के कीट मिर्च की जड़ों को हानि पहुंचाते है. जिससे फसल को अधिक नुकसान पहुँचता है. इससे प्रभावित फसल पूर्ण तया नष्ट हो जाती है.
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौध की रोपाई से पहले जमीन में मिला देनी चाहिए.
फल छेदक इस कीट का वैज्ञानिक नाम स्पेडोप्टेरा लाइटूरा फेब्रीसस है. इस कीट की इल्ली फलों में गोल छिद्र बनाकर उसके अंदर के भाग को खाती है. जिसके कारण फल सड़ कर झड़ जाते है.
रोकथाम-

  • इस कीट की प्रारम्भिक अवस्था में नीमतेल 5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रै करें.
  • स्पाइनोसेड 4 मि.ली. या इण्डोक्साकार्ब 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें.
  • कटुआ इल्ली (एग्रोटिस इप्सिलोन)-इस कीट की इल्ली रात्रि के समय पौधों को आधार से काट देती हैं. दिन के समय यह इल्लियाँ मिट्टी की दरारों के नीचे छुप जाती हैं.
यह भी पढ़ेंः  जलेबी रोग (Jalebi Rog), प्याज के रोग जो कर देंगे पूरी फसल बर्बाद, जाने उनकी रोकथाम का तरीका

रोग एवं रोकथाम
आर्दगलन (डेम्पिंग ऑफ)- इस रोग के प्रकोप से पौधे आकर में छोटा और जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ कर कमजोर होने लगता है जिसकी वजह से पौधे गिर कर मर जाते है.
रोकथाम- पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज की बुबाई से पहले थाइरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर ले. जहाँ नर्सरी लगी है उस जमीन के आस पास की भूमि 4 से 6 इंच उठी हुई होनी चाहिए.

छाछया- इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्णी धब्बे दिखाई देने लगते है. रोग अधिक होने पर पत्तियां पीली पड़कर झड़ जाती हैं.
रोकथाम- इसके रोग के प्रकोप से बचने के लिए केराथियॉन एल सी 1 मिलीलीटर या केलेक्सिन एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का स्प्रे करें. आवश्यकतानुसार इसीको 15 दिन के अन्तराल पर दुबारा लगाएं

यह भी पढ़ेंः  पत्ता लपेट सुंडी: धान की फसल को पत्ता लपेट सुंडी से बचाने का सही तरीका

श्याम वर्ण (एन्थ्रोक्लोज)- इस रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते है और पत्तियाँ झड़ने लगती हैं. इस रोग से पौधों की शाखएँ ऊपर से नीचे की और सूखने लगती है. पके फलों पर भी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं.
रोकथाम- इस बीमारी से बचाव के लिए मैन्कोजेब या जाईनब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल के 2 से 3 छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें

जीवाणु धब्बा रोग- इस रोग से पत्तियों पर छोटे छोटे जलीय धब्बे बनते हैं तथा बाद में गहरे भूरे रंग के दिखाई देने लगते है. अन्त में रोगग्रस्त पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती है
रोकथाम- इस रोग के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 200 मिलीग्राम, या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का स्प्रे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तर पर करें

मूल ग्रन्थि (सूत्र कृमि)- इसके प्रभाव से पौधों की जड़ों में गांठ बन जाती है जिसकी वजह से पौधे पीले पड जाते है और पौधों की ग्रोथ भी रुक जाती है. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है.
रोकथाम- मिर्च की रोपाई के समय 25 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान 3 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलावें या पौधों की जड़ों को एक मिलीलीटर फास्फोमिडॉन 85 एस एल प्रति लीटर पानी के घोल में आधा घंटा तक भिगो कर खेत में रोपाई करें.

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Last Modified: 26 March, 2023 12:53 PM

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