Makka ki Kheti (Maize Cultivation) : मक्का की फसल एक बहुपयोगी फ़सल है क्योंकि मक्का मनुष्य और पशुओं के आहार का प्रमुख स्रोत है. मक्का औद्योगिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है. मक्का की खेती (Corn Cultivation) भारत के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी इलाकों में बहुतायत में उगाई जाती है. मक्का की कुछ प्रजाति खरीफ ऋतु में ही उपयुक्त रहती है, तो कुछ ऐसी होती हैं, जो सिर्फ रबी सीजन में ही उपयुक्त रहती है. जिसको किसान भाई दोनों सीजन में उगाकर अच्छी पैदावार लेने के साथ-साथ अच्छी कमाई भी कर सकते है. मक्का की खेती भारत में मुख्य रूप आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, राजस्थान, एमपी, छ्त्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है. अगर कोई किसान भाई मक्का की खेती (Maize Cultivation in India) करना चाहते है तो वे इस लेख को पूरा पढें क्योकि इस आर्टिकल में मक्का की खेती के करने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखा चाहिए इसकी पूरी जानकारी दी जा रही है. चलिए मक्का की खेती के बारें में चर्चा करते है.
मक्के का उपयोग दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है चाहे वो खाने में या फिर औद्योगिक छेत्र में. मक्के की चपाती से लेकर भुट्टे सेंककर, मधु मक्का के कॉर्नफलेक्स, पॉपकार्न, लइया के रूप मे आदि के साथ-साथ अब मक्का का उपयोग कार्ड आइल, बायोफयूल के लिए भी होने लगा है. करीब 65 प्रतिशत मक्का का उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है. भुट्टे तोड़ने के बाद बची हुई कड़वी पशुओं के चारे के रूप उपयोग किया जाता है. औद्योगिक दृष्टि से मक्का प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट पेन्ट्स स्याही लोशन स्टार्च कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनने के काम में लिया जाता है. बिना परागित मक्का के भुट्टों को बेबीकार्न मक्का कहते है जिसका उपयोग सब्जी और सलाद के रूप में किया जाता है. बेबीकार्न पौष्टिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होता है.
मक्का की खेती के लिए भूमि चयन (Land Selection for Maize Farming)
वैसे तो मक्के की खेती (Maize Farming) को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन इसके लिए दोमट मिट्टी या बुलई मटियार वायु संचार और पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था के साथ साथ 6 से 7.5 पीएच मान वाली मिटटी उपयुक्त मानी गई है.
मक्का की खेती के लिए मिट्टी की तैयारी (Soil preparation for Maize Cultivation )
मक्के की फसल (Cultivation of Maize) के लिए खेत की तैयारी जून महा से कर देनी चाहिए. मक्के की फसल के लिए गहरी जुताई करना लाभदायक होता है. खरीफ की फसल के लिए 15-20 सेमी गहरी जुताई करने के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में नमी बानी रहती है. इस तहह से जुताई करने का मुख्य उदेश्य खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाना होता है.
फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए मिट्टी की तैयारी करना उसका प्रथम पड़ाव होता है, जिससे हर फसल को गुजरना होता है. मक्का की फसल (Corn Crop Cultivation Guide) के लिए खेत की तैयारी समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे डालनी चाहियें. भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 किलो जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व खेत में डाल कर खेती की अच्छे से जुताई करें.रबी के मौसम में आपको खेत की दो मर्तबा जुताई करनी चाहिए.
मक्का की बुवाई का समय (Maize Sowing Time)
- खरीफ :- जून से जुलाई तक
- रबी :- अक्टूबर से नवम्बर तक
- जायद :- फरवरी से मार्च तक
Note – जिन किसान भाइयों के साथ खरे पानी की समस्या है तो वे मक्के की बिजाई को मेड़ के ऊपर करने की बजाय साइड में करें ताकि खरे पानी से जड़ें प्रभावित न हों.
मक्के की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Corn)
मक्का की क़िस्में अवधि के आधार पर मक्का की क़िस्मों को निम्न चार प्रकार में बाँटा गया है –
अति शीघ्र पकने वाली किस्मे (75 दिन से कम)- जवाहर मक्का-8, विवेक-4, विवेक-17, विवेक-43, विवेक-42, प्रताप हाइब्रिड मक्का-1
शीघ्र पकने वाली किस्मे – (85 दिन से कम)- जवाहर मक्का-12, अमर, आजाद कमल, पंत संकुल मक्का-3, चन्द्रमणी, प्रताप-3, विकास मक्का-421, हिम-129, डीएचएम-107, डीएचएम-109, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-1, पूसा अरली हाइब्रिड मक्का-2, प्रकाश, पी.एम.एच-5, प्रो-368, एक्स-3342, डीके सी-7074, जेकेएमएच-175, हाईशेल एवं बायो-9637
मध्यम अवधि मे पकने वाली किस्मे – (95 दिन से कम)- जवाहर मक्का-216, एचएम-10, एचएम-4, प्रताप-5, पी-3441, एनके-21, केएमएच-3426, केएमएच-3712, एनएमएच-803 , बिस्को-2418
देरी की अवधि मे पकने वाली किस्मे – (95 दिन से अधिक )- गंगा-11, त्रिसुलता, डेक्कन-101, डेक्कन-103, डेक्कन-105, एचएम-11, एचक्यूपीएम-4, सरताज, प्रो-311, बायो-9681, सीड टैक-2324, बिस्को-855, एनके 6240, एसएमएच-3904.
मक्के की बीज की मात्रा (Corn Seed Quantity)
- संकर जातियां :- 12 से 15 किलो/हे.
- कम्पोजिट जातियां :- 15 से 20 किलो/हे..
- हरे चारे के लिए :- 40 से 45 किलो/हे.
मक्के की बुवाई का तरीका (Maize Sowing Method)
मक्का की बुआई मेंड़ के पूर्वी और पश्चिमी भाग के मेंडों व उपर 3-5 से.मी. की गहराई पर करनी चाहिए. मक्का की बुआई (Corn cultivation) के लिए प्लांटर का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि इससे बीज और उर्वरक को उचित स्थान पर एक ही बार में पहुंचाने में मदद मिलती है. चारे के लिए बुआई सीडड्रिल द्रा करनी चाहिए. मेड़ों पर बुआई करते समय पीछे की ओर चलना चहिए. वर्षा प्रारंभ होने पर मक्का की बुआई शुरू कर देनी चाहियें. अगर आपके पास सिंचाई का साधन हो तो मक्का को 10 से 15 दिन पूर्व ही बो देनी चाहिए जिससे अच्छी पैदावार के साथ साथ बाजार में उचित मूल्य मिल जाता है.
- शीघ्र पकने वाली:- कतार से कतार-60 से.मी. पौधे से पौधे-20 से.मी.
- मध्यम/देरी से पकने वाली :- कतार से कतार-75 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी.
- हरे चारे के लिए :- कतार से कतार:- 40 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी.
मक्का की खेती के लिए खाद व उर्वरक की मात्रा (Quantity of Manure and Fertilizer for Maize Cultivation)
मक्का की खेती के लिए खाद व उर्वरक की मात्रा भी चुनी हुयी प्रजाति के अनुसार करनी चाहिए जिससे फसल की वृद्धि और उत्पादन दोनों को ही फ़ायदा होता है. जैसे – मक्का की खेती के लिए प्रयोग की जाने वाली नाइट्रोजन की मात्रा का तीसरा भाग बुआई के समय, दूसरा भाग बुआई के लगभग एक माह बाद साइड ड्रेसिंग के रूप में, तथा तीसरा और अंतिम भाग नरपुष्पों निकलने से पहले. फ़ोसफ़ोरस और पोटाश दोनों की पूरी मात्रा बुआई के समय खेत डालना चाहिए जिससे पौधों की जड़ों से होकर पौधों में पहुँच सके जिससे मक्का के पौधों की बृद्धि अच्छी होगी. जब आप किसी फसल के लिए खेती की तैयारी कर लेते है यूं समझिए आपका 50 फीसद काम पूरा हो चुका होता है.
- शीघ्र पकने वाली :- 80 : 50 : 30 (N:P:K)
- मध्यम पकने वाली :- 120 : 60 : 40 (N:P:K)
- देरी से पकने वाली :- 120 : 75 : 50 (N:P:K)
मक्का की खेती के लिए सिंचाई (Irrigation for Maize Cultivation)
मक्का की पूरी फसल अवधि को करीब 400-600 mm पानी की जरुरत होती है. इसकी सिंचाई की महत्वपूर्ण अवस्था पुष्पन और दाने भरने का समय है. मक्का के खेत से जल निकासी उचित व्यवथा होनी चाहिए जिससे खेत में अपनी जमा नहीं होना चाहियें.
मक्का की खेती में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Maize Cultivation)
फसल चाहे कोई भी हो किसान भाइयों के लिए खरपतवार की समस्या बानी रहती है. अगर आपने शुरुआत में अपनी फसल को खरपतवार से बचा लिया तो उस फसल में पैदावार अच्छी रहेगी. हर फसल को खरपतवार से बचाने के लिए अलग-अलग विधियां निर्धारित की गई है.चलिए बात करते है मक्का की फसल को खरपतवारों से कैसे बचाएं.
यह खरपतवार इस प्रकार रहते हैं:- सांठी, चौलाई, भाखडी, बिस्कोपरा, जंगली जूट, दूधी, हुलहुल, नुपिया, सांवक आदि है.
ऐसे करें खरपतवार पर नियंत्रण
निराई और गुड़ाई – खरीफ की फसल में खरपतवारों का प्रकोप अधिक रहता है, जोकि ये फसल से पोषण, जल एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते है जिसके कारण फसल के पैदावार में 40 से 50 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंचते है.
छिड़काव – 400 से 600 ग्राम एट्राजीन (50 प्रतिशत घुलनशील पाउडर) प्रति एकड़ 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के तुरंत बाद छिड़काव करें जिससे इनपर नियंत्रण किया जा सकता है. इसके अलावा आपइन खरपतवारों पर नियंत्रण करने हेतु टेबोट्रायोन (लोदिस 34.4% घु.पा.) का 115 मि.ली. तैयार शुद्ध मिश्रण + 400 मि.ली. चिपचिपे पदार्थ को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 10 से 15 दिन बाद या खरपतवार की 2–3 पत्ती अवस्था पर प्रति एकड़ स्प्रे करें.
मक्के में लगने वाले कीट व रोगों तथा उपचार (Pests and Diseases in Maize and Treatment)
मक्का कार्बोहाईड्रेट का उत्तम स्रोत होने साथ-साथ एक स्वादिष्ट फ़सल भी है जिसकी वजह से कीट अधिक लगते है. मक्का में लगने वाले प्रमुख कीट और रोग के बारें में बात करते है.
मक्का का धब्बेदार तनाबेधक कीट :- इस प्रकार के कीट पौधे की जड़ को छोड़कर समस्त भाग को प्रभवित करते है. इस कीट की इल्ली सर्वप्रथम तने में छेद करती है. इसके प्रकोप से पौधा बौना हो जाता है और उस पौधे में दाने नहीं आते है. शुरूआती अवस्था में डैड हार्ट (सूखा तना) बनता है. इसे पौधे के निचले स्थान के दुर्गध से पहचाना जा सकता है.
गुलाबी तनाबेधक कीट:- इस कीट का प्रकोप होने से पौधे के मध्य भाग में नुकसान होता है. जिसके फलस्वरूप मध्य तने से डैड हार्ट का निर्माण होता है जिसकी वजह से पर दाने नहीं आते है.
उक्त कीट प्रबंधन हेतु निम्न उपाय है :-
तनाछेदक के नियंत्रण के लिये अंकुरण के 15 दिनों बाद फसल पर क्विनालफास 25 ई.सी. का 800 मि.ली./हे. अथवा कार्बोरिल 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. का 1.2 कि.ग्रा./हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके 15 दिनों बाद 8 कि.ग्रा. क्विनालफास 5 जी. अथवा फोरेट 10 जी. को 12 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर एक हेक्टेयर खेत में पत्तों के गुच्छों में डालें.
मक्का के प्रमुख रोग
1. डाउनी मिल्डयू :- इस रोग का प्रकोप मक्का बोने के 2-3 सप्ताह बाद लगने लगते है. सर्वप्रथम पर्णहरिम का ह्रास होने से पत्तियों पर धारियां पड़ जाती है, प्रभावित हिस्से सफेद रूई जैसे नजर आने लगते है, पौधे की बढ़वार रूक जाती है
उपचार :- डायथेन एम-45 दवा आवश्यक पानी में घोलकर 3-4 स्प्रे करना चाहिए.
2. पत्तियों का झुलसा रोग :- पत्तियों पर लम्बे नाव के आकार के भूरे धब्बे बनते हैं. रोग नीचे की पत्तियों से बढ़कर ऊपर की पत्तियों पर फैलता हैं. नीचे की पत्तियां रोग द्वारा पूरी तरह सूख जाती है.
उपचार :- रोग के लक्षण दिखते ही जिनेब का 0.12% के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
3. तना सड़न :- पौधों की निचली गांठ से रोग संक्रमण प्रारंभ होता हैं तथा विगलन की स्थिति निर्मित होती हैं एवं पौधे के सड़े भाग से गंध आने लगती है. पौधों की पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं व पौधे कमजोर होकर गिर जाते है.
उपचार :- 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों पर डालना चाहिये.
मक्का की उपज (Corn Yield)
- 1. शीघ्र पकने वाली :- 50-60 क्ंविटल/हेक्टेयर
- 2. मध्यम पकने वाली :- 60-65 क्ंविटल/हेक्टेयर
- 3. देरी से पकने वाली :- 65-70 क्ंविटल/हेक्टेयर
मक्का की फसल की कटाई व गहाई (Harvesting and threshing of Maize Crop)
फसल अवधि पूर्ण होने के पश्चात अर्थात् चारे वाली फसल बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर एवं संकुल किस्म बोने के 90-115 दिन बाद तथा दाने मे लगभग 25 प्रतिशत् तक नमी हाने पर कटाई कर लेनी चाहिए
मक्का की फसल की कटाई के बाद गहाई सबसे महत्वपूर्ण कार्य है. मक्का के दाने निकलने के लिए सेलर का उपयोग किया जाता है. सेलर न होने की स्थिति में थ्रेशर में सुखे भुट्टे डालकर गहाई की जा सकती है.
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मुझे भी मक्का का बीज चाहिए जो अभी बुवाई कि जाऐ
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