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कृषि दिशा / खेती-बाड़ी / तोरई की खेती (Torai ki kheti) कब और कैसे करे, जाने | Ridge Gourd Farming in Hindi

तोरई की खेती (Torai ki kheti) कब और कैसे करे, जाने | Ridge Gourd Farming in Hindi

By: Sanjay Sharma | Updated at:22 November, 2022 google newsKD Facebook

Torai ki kheti (Ridge Gourd Farming): तोरई की खेती (Ridge Gourd Cultivation) को कद्दू वर्गीय रूप में जाना जाता है, इसकी खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती है, लेकिन मध्यप्रदेश, केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, बंगाल और उत्तर प्रदेश आदि राज्य इसके उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाते है. बाजार में तोरई की मांग को देखते हुए यदि इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो किसान तोरई की खेती (Ridge Gourd Farming) से अच्छा मुनाफा कमा सकते है. तो चलिए जानते है तोरई की खेती कैसे की जाती है.

Ridge Gourd Farming
तोरई की खेती (Torai ki kheti) कब और कैसे करे, जाने

तोरई की खेती कैसे – Torai ki kheti

तोरई (Ridge gourd) को क्षेत्र के आधार पर कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे तोरी, तुराई, झींगा, झिंग्गी आदि. इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन ए आदि प्रचूर मात्रा में पाई जाती है. गर्मियों में तोरई की मांग अधिक होने की वजह से किसानों के लिए इसकी खेती करना बहुत लाभदायक हो सकती है. अच्छा मुनाफा कमाने के लिए किसान इसको लो-टनल तकनीक से कर सकते है.

तोरई की खेती की पूरी जानकारी – Ridge Gourd Farming in Hindi

जलवायु (Climate)

  • तोरई की खेती के लिए उष्ण तथा नमीयुक्त जलवायु उपयुक्त मानी गई है.
  • तोरई की फसल के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उचित होता है.

भूमि का चयन (Selection of Land)

  • वैसे तो तोरई सब तरह भूमि में उगाया जा सकता है.
  • अच्छी उपज के लिए जैविक तत्वों वाली हलकी दोमट भूमि उत्तम मानी गई है.
  • खेत से जल निकासी का उचित प्रबंध होनी चाहिए.
  • तोरई की खेती के लिए मिट्टी का पी एच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.
  • नदियों के किनारे वाली जमीन इसकी खेती इसके लिए उपयुक्त रहती है.
यह भी पढ़ेंः  Kinnow Cultivation: किन्नू की खेती (Kinnow ki Kheti) से किसानो की होगी मोटी कमाई, देश विदेशों में भी भारी डिमांड

खेत की तैयारी

  • तोरई की खेती (Ridge Gourd farming) के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने हाल से करें जिससे खेत में मौदूज खरपतवार और कीट नष्ट हो जायेंगे.
  • खेत तैयार करते समय आवश्यकतानुसार खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद डालें.
  • खाद डालने के बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें.
  • इसके बाद कल्टीवेटर से खेत की 2-3 बार आडी-तिरछी गहरी जुताई कर खेत को पाटा लगाकर समतल कर लें.

तोरई की उन्नत किस्में

तोरई की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए पूसा संस्थान द्वारा तैयार किस्मों का चयन कर सकते है. जिनमें पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजतका, घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, कोयम्बू- 2 अदि किस्मों को काफी पसंद किया जाता है. 

तोरई की खेती कब करें

तोरई की अगेती खेती करने के लिए लो टनल/पॉलीहाउस का इस्तेमाल कर सकते है. इनमें नियंत्रित तापमान पर पौधे तैयार किये जा सकते है.

बुआई का समय

ग्रीष्मकालीन मौसम तोरई की खेती के लिए मार्च का समय उचित होता है जबकि खरीफ़ की फसल के लिए जून से जुलाई को सर्वोत्तम माना है.

बीज की मात्रा

प्रति हेक्टेयर 3-5 kg बीज की आवश्यकता होती है.

बीज उपचार

बीज अंकुरण की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए बुवाई से पहले बीज को उपचारित करना चाहिए. लेकिन बुवाई के लिए हाइब्रिड बीज को उपचारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है. तोरई के हाइब्रिड बीज की सीधे बुवाई कर सकते है.

यदि बीज घर पर बनाया है तो बीज को उपचारित करने की आवश्यकता होती है बीज को थीरम या मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें. इससे बीजों के अंकुरण की क्षमता बढ़ती है.

तोरई की रोपाई का सही तरीका

खेत की जुताई के बाद खेत में 3-4 फीट की दूरी पर क्यारियां बनाकर बीज की बुवाई करे. जिसमें पौध से पौध के बीच की दूरी 80 सेमी.रखें. अच्छे बीज अंकुरण के लिए बुवाई के तुरंत बाद फसल की सिचाई करें. जिसके लिए 50 सेमी. चौडी व 35 से 45 सेमी. गहरी नालियां बनायें.

खाद और रासायनिक उर्वरक

तोरई की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत तैयारी के दौरान 20-25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर से खेत में डालें. रासायनिक खादों की मात्रा मिट्टी परिक्षण के अनुसार ही डालें वैसे 120 kg नाइट्रोजन, 100 kg फॉस्फोरस, 80 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिदाब से खेत में डालें.

रोग एवं रोकथाम

बरसात में तोरई की फसल पर फफूंदी रोग आने की अधिक संभावना बनी रहती है. इसके लिए मेन्कोजेब या बाविस्टीन या सल्फर+टेबुकोनाज़ोल के मिश्रण 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर हर 15 से 20 दिन के अंतर पर फसल पर छड़काव करें.

किट एवं रोकथाम

तोरई की फसल पर लाल मकड़ी, फल की मक्खी, सफ़ेद ग्रब आदि का प्रकोप अधिक होता है. इन कीटों से वचाव के लिए कार्बोसल्फान 25 ईसी या क्यूनालफास या dimethoate 30% Ec 1.5 लीटर 900 – 1000 लीटर पानी में मिलकर प्रति हेक्टेयर 10-15 दिन के के अंतर पर फसल पर छड़काव करें.

खरपतवार नियंत्रण

तोरई की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए समय समय पर खेत की निराई-गुड़ाई करना अत्यंत आवश्यक है.

सिंचाई प्रबंधन

बारिश के मौसम में आवश्यकतानुसार सिचाई करें. ग्रीष्मकालीन में तोरई की फसल की सिचाई 5 से 7 दिन के अंतर पर करें. यदि आप ड्रिप से सिचाई करते है तो आपका समय और पैदावार अच्छी होगी.

तोरई की तुड़ाई – How to Harvest Ridge Gourd ?

तोरई के फलों की तुड़ाई (Harvest Ridge Gourd ) उनके आकर और मंडी भाव के अनुसार करें. वैसे फलों की तुड़ाई 6-7 दिनों के अन्तराल पर कर लेनी चाहिए. तोरई के फलों को तोड़ने के बाद ठण्डे छायादार स्थान पर रखे. इसके अलावा टूटे हुए फलों पर बीच-बीच का पानी छिड़कते रहें जिससे फल तेज़ बने रहेंगे. इस प्रकार पूरी फसल की तुड़ाई लगभग 7-8 हो जाती है.

उत्पादन

तोरई की पैदावार (Ridge Gourd Yield) उसकी वैरायटी पर निर्भर करता है. यदि तोरई की खेती के लिए उन्नत किस्म चयन किया और उसको वैज्ञानिक तरीके से उगाया गया तो 150 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हो जाती है.
अगर आपको Ridge Gourd farming (Torai ki kheti in Hindi) से संबन्धित अन्य जानकरी चाहिए तो आप हमें कमेंट कर सकते है, साथ में यह भी बताएं कि आपको यह लेख कैसा लगा, अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा है आप इस आर्टिकल को शेयर करें.

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