मिर्च की खेती / Chilli Cultivation / Hari Mirch ki kheti : हरी मिर्च की खेती (Chilli Farming) को भारत के आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्य रूप से की जाती है. हरी मिर्च की खेती (Chilli Farming) अगर वैज्ञानिक तरीके से की जाये तो किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा सकते है. मिर्च की खेती कैसे करे करें इसकी विस्तृत जानकारी हम इस आर्टिकल के जरिये बताएँगे.

मिर्च की खेती कब की जाती है?
किसान भाई मिर्च की खेती साल में तीन बार कर सकते है. देश के ज्यादातर किसान खरीब की फसल को महत्व देते है. मिर्च की खेती कब की जाती है इसके लिए समय सारणी देखे. मिर्च की खेती के अलावा आप बैगन की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते है.
वर्षा ऋतु | शरद ऋतु | ग्रीष्म ऋतु |
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वर्षा ऋतु की फसल लेने के लिए किसान को उत्तम समय जून जुलाई का है. | सितम्बर-अक्टूबर मे मिर्च की बुआई कर देनी चाहिए. | ग्रीष्म कालीन मौसम की फसल मुख्यतः फरवरी -मार्च मे बुआई कर दी जाती है |
मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Chilli Cultivation)
वैसे तो मिर्च की खेती हर प्रकार की जलवायु में हो सकती है लेकिन इसके लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त मानी गई है. इसके पौधों के लिए ज्यादा ठंड व गर्मी दोनों ही हानिकारक होते है. मिर्च की खेती से अच्छी पैदावार लेने के के लिए 15-30 डिग्री सेल्सियस तापमान अति उत्तम माना गया है.अगर इससे कम और ज्यादा तापमान होता है तो इसका असर मिर्च के उत्पादन पर पड़ेगा. इसको लगभग 100 सेन्टीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है. हरी मिर्च की फसल पर पाले का प्रकोप अधिक होता है. पाले की आशंका वाले क्षेत्रों में इसकी अगेती खेती की जा सकती है.
मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Chilli Farming)
मिर्च की खेती के लिए 6.5 से 7.5 पी एच सर्वोतम माना जाता है. वैसे तो हरी मिर्च की खेती सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती है लेकिन अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी, लाल दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो वो मिटटी सबसे उपुयक्त मानी गई है. लवण वाली भूमि इसके अंकुरण और प्रारंभिक विकास को प्रभावित करती हैं.
मिर्च की उन्नत किस्में (Advanced varieties of Hari Mirch ki Kheti)
किसी भी फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए किस्मों का चुनाव करना महत्वपूर्ण है. किसान भाईयों मिर्च की खेती के लिए किस्मों का चुनाव अपने क्षेत्र के अनुसार ही करना चाहिए. जिसे आपको अच्छी पैदावार मिलेगी. साथ ही हम आपको कुछ प्रचलित सामान्य व संकर किस्में के बारें में बता रहे है. मिर्च की उन्नत किस्मों Chili Varieties के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे
- काशी अनमोल (लगभग 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार
- काशी विश्वनाथ (लगभग 220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार
- जवाहर मिर्च 283 व 218 (लगभग 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार
- अर्का सुफल (लगभग 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार
- मिर्च की अन्य सामान्य उन्नत किस्मों में जे- 218, एआरसीएच- 236, गायत्री, प्रिया, बीएसएस- 14, दुर्गा, केटीपीएल- 19, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार, भाग्य लक्ष्मी और एस- 86235 शामिल हैं.
संकर किस्में
- काशी अर्ली (लगभग-300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार)
- काशी हरिता (लगभग 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार)
- अन्य संकर किस्मों में उजाला, यूएस- 611 व 720, तेजस्वनी, एचपीएच- 1900 व 2680, अग्नि, चैम्पियन औरसूर्या आदि शामिल हैं.
मिर्च के बीज की मात्रा (Chilli Seeds Quantity )
मिर्च की हाइब्रिड किस्मों के लिए बीज की मात्रा 80-100 ग्राम और अन्य किस्मों के लिए 200 ग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए.
बीज का उपचार
मिर्च के बीज की बिजाई करने से पहले उसको उपचारित कर लेना चाहिए ताकि बीज का अंकुरण सही से हो. बीज को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेनडाज़िम प्रति किलो बीज से उपचार कर लेना चाहिए. रासायनिक उपचार के बाद बीज को 5 ग्राम ट्राइकोडरमा या 10 ग्राम सीडियूमोनस फ्लोरीसैन्स प्रति किलो बीज से उपचार करें और बीज को छांव में रखें. उसके बाद बिजाई के लिए प्रयोग करें. नर्सरी में 15 दिनों के अंतराल के बाद ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी से छिड़काव करे. इससे मुरझा रोग से निजात मिलेगी.
मिर्च की नर्सरी (Chilli Nursery)
मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनो ऋतुओं में की जा सकती है. मिर्च की नर्सरी लंबाई करीब 10-15 फुट और चौड़ाई करीब 2.33-3 फुट से अधिक न हो. 5-10 सेंटीमीटर के अन्तर से 2-2.5 सेंटीमीटर गहरी नाली बना कर मिर्च के बीज बोए. इसके साथ पौधशाला में जल निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए. पौध को छाया रहित स्थान पर बोना चाहियें तथा नर्सरी को पाले से बचाने के लिए अच्छा प्रबंध करना चाहिए.
नर्सरी की तैयारी (Chilli Nursery care)
मिर्च की नर्सरी तैयार करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे-
- मिर्च की नर्सरी की तैयारी के समय 2 से 3 टोकरी वर्मीकंपोस्ट या सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोरेट दवा प्रति क्यारी की मिट्टी में डाल कर मिलाये
- मिर्च की नर्सरी तैयार करने के लिए बीजों की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 15 सेंटीमीटर उँची उठी क्यारी में करें.
- बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बन्डाजिम दवा 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से क्यारी को तर करे. घरेलू बीज इस्तेमाल कर रहे किसानों को सलाह है, कि वो बीज को थायरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
- अगले दिन क्यारी में 5 सेंटीमीटर दूरी पर 0.5 से 1 सेंटीमीटर गहरी नालियाँ बनाकर बीज बुवाई करें.
- बीज बोने के बाद गोबर खाद, मिटटी व बालू (1:1:1) मिश्रण से ढकने के बाद क्यारियों को धान के पुआल, सूखी घास या पलाष के पत्तों से ढकें.
- मिर्च की रोपाई करने के करीब 85 से 95 दिन बाद फल तोड़ने योग्य हो जाता है. इस प्रकार 1 से 2 सप्ताह के अंतराल पर पके फलों को तोड़ लिया जाता है. इस तरह फसल की 8 से 10 बार तोड़ाई की जाती है.
- सूखी मिर्च के लिये फलों को 140 से 150 दिन बाद जब तोडा जाता है मिर्च का रंग लाल हो जाता है
- पकी हुई मिर्च को 8 से 10 दिन तक धूप में सुखाया जाता है. आधा सुख जाने पर मिर्च को सायंकाल के समय एक ढेरी में इक्कट्ठा करके दबा दिया जाता है. जिसकी वजह से मिर्च तीखी हो जाती है. बड़े पैमाने पर मिर्ची को 53 से 54 सेंटीग्रेट तापमान पर 2 से 3 दिन तक सुखाया जाता है
- उपरोक्त विधि से मिर्च की खेती करने के बाद और अनुकूल परिस्थितियों में हरी मिर्च की सामान्य किस्मों से औसत उपज 125 से 250 क्विंटल और संकर किस्मों से 250 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज ली जा सकती है. यह पैदावार स्थान और मौसम के हिसाब से कम या ज्यादा भी हो सकती है.
- सूखी मिर्च की सामान्य किस्मों से 25 से 30 किंवटल और संकर किस्मों से 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है
मिर्ची की फसल के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Chilli Crop)
मिर्च की फसल के लिए खेत की तैयारी अच्छे से करनी चाहिए ताकि फसल की उपज अच्छी हो सके. खेत में खाद डालकर हल, कल्टीवेटर, रोटेवर की सहायता से खेत को अच्छी तरह से जुताई कर लेनी चाहिए.
मिर्च की पौध की रोपाई (Chilli Transplant)
मिर्च की पौध की रोपाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी का ध्यान रखें. किसान को पौधे से पौधे की दूरी डेढ़ से दो फीट के बीच रखनी चाहिए तथा कतार से कतार की दूरी ढाई से 3 फीट रखें. अच्छे उत्पादन और उत्तम फसल लेने के लिए इसको सही माना गया है. प्रति एकड़ पौधों की बात करें तो मिर्ची के 11000 से लेकर 12000 पौधे प्रति एकड़ प्लांट की जरूरत पड़ती है. मिर्च का पौधा 8 CM से 10 सेंटीमीटर की मिर्च की नर्सरी तैयार हो जाने पर इसका ट्रांसप्लांट करना चाहिए यानी इसको खेत में रोपाई कर देनी चाहिए
मिर्च की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizers for Chilli Cultivation )
नाइट्रोजन 25 किलो (55 किलो यूरिया), फासफोरस 12 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो) और पोटाश 12 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ आवश्यकता होती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा पौध रोपाई के समय खेत में डालें . बाकी बची नाइट्रोजन पहली तुड़ाई के बाद डालें
अच्छी पैदावार के लिए – मिर्च के पौधों में टहनियां निकल आने के 40-45 दिन बाद मोनो अमोनियम फासफेट 12:61:00 की 75 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की छिड़काव करें. फूल निकलते समय सलफर/बैनसल्फ 10 किलो प्रति एकड़ डालें और कैल्श्यिम नाइट्रेट 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की छिड़काव करें जिससे अच्छी पैदावार आएगी.
पानी में घुलनशील खादें : मिर्च की पौध खेत में लगने के 10-15 दिनों के बाद 19:19:19 जैसे सूक्ष्म तत्वों की 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. फिर 40-45 दिन बाद 20 प्रतिशत बोरोन 1 ग्राम + सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें.
फूल निकलने के समय 0:52:34 की 4-5 ग्राम + सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. फल तैयार होने के समय 13:0:45 की 4-5 ग्राम + कैल्श्यिम नाइट्रेट की 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें.
विकास दर बढ़ाने के लिए : फल की अच्छी क्वालिटी और फूल को गिरने से रोकने के लिए फूल निकलने के समय एन एन ए 40 पी पी एम 40 एम जी प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. फसल का अच्छा ध्यान रखने से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है. फूल निकलने के समय 15 दिनों के अंतराल पर होमोबरासिनालाइड 5 मि.ली. प्रति 10 लीटर की तीन छिड़काव करें. अच्छी क्वालिटी वाले अधिक फलों के गुच्छे लेने के लिए बिजाई के 20,40,60 और 80 दिन पर ट्राइकोंटानोल की स्प्रे विकास दर बढ़ाने के लिए 1.25 पी पी एम (1.25 मि.ली. प्रति लीटर) करें।
मिर्च की खेती में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Chilli Cultivation )
मिर्च की नर्सरी की रोपाई होने के 20 से 25 दिन बाद पहली निंदाई और दूसरी निंदाई 35 से 40 दिन बाद करें. जिससे खरपतवार नियंत्रण के साथ साथ मृदा नमी का भी संरक्षण करें. अगर आप खरपतवारनाशी से खरपतवार की रोकथाम करना चाहते है तो 300 ग्राम आक्सीफ्ल्यूओरफेन का पौध रोपण से ठीक पहले छिड़काव 600 से 700 लीटर पानी घोलकर प्रति हेक्टेयर स्प्रे करें.
मिर्च की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management of Chilli Crop)
मिर्च की फसल ज्यादा पानी में नहीं उगाई जा सकती तो इसलिए इसमें आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करें. अधिक पानी देने से पौधे लम्बे और पतले आकार में बढ़ते हैं. अधिक पाने से फूल भी गिरने लगता है. सिचाई की मात्रा मिटटी और मौसम की स्थिति पर भी निर्भर करता है. यदि वर्षा कम हो रही है तो 10 से 15 के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. दोमट मिट्टी में सिचाई 10 से 12 दिन के अंतराल पर अगर ढालू जमीन है तो 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर देनी चाहिए. मिर्च की फसल पर फल और फूल आना शुरू हो जाता है तो उस स्थिति में सिचाई करना अत्यन्त आवष्यक हैं. नहीं तो फसल से फूल और फल गिरने लगते है. फसल को पानी की जरुरत है की नहीं इसकी पहचान कैसे करें यदि मिर्च के पौधे शाम के 4 के आस पास मुरझाने लगे तो समझ लो उनको पानी की आवश्यकता है. इसके साथ मिर्च की फसल में पानी को रुकने नहीं देना चाहिए.
मिर्च की फसल में लगने वाले रोग
कीट एवं रोकथाम
सफेद लट- इस तरह के कीट मिर्च की जड़ों को हानि पहुंचाते है. जिससे फसल को अधिक नुकसान पहुँचता है. इससे प्रभवित फसल पूर्णतया नष्ट हो जाती है.
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौध की रोपाई से पहले जमीन में मिला देनी चाहिए.
सफेद मक्खी, पर्ण जीवी (थ्रिप्स), हरा तेला व मोयला – इस प्रकार के कीट पत्तियों और पौधों के कोमल भाग से रस चूसकर फसल को काफी नुकसान पहुँचाते हैं.
रोकथाम- इस प्रकार के कीट की रोकथाम के लिए फास्फोमिडॉन 85 एस एल 0.3 मिलीलीटर या मैलाथियान 50 ई सी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करें. आवश्यकतानुसार 15 से 20 दिन के बाद फिर छिड़काव करें.
मूल ग्रन्थि (सूत्र कृमि)- इसके प्रभाव से पौधों की जड़ों में गांठ बन जाती है जिसकी वजह से पौधे पीले पड जाते है और पौधों को ग्रोथ भी रुक जाती है. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है.
रोकथाम- मिर्च की रोपाई के समय 25 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान 3 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलावें या पौधों की जड़ों को एक मिलीलीटर फास्फोमिडॉन 85 एस एल प्रति लीटर पानी के घोल में आधा घंटा तक भिगो कर खेत में रोपाई करें.
रोग एवं रोकथाम
आर्दगलन (डेम्पिंग ऑफ)- इस रोग के प्रकोप से पौधे आकार में छोटा और जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ कर कमजोर होने लगता है जिसकी वजह से पौधे गिर कर मर जाते है.
रोकथाम- पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज की बुबाई से पहले थाइरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर ले. जहाँ नर्सरी लगी है उस जमीन के आस पास की भूमि 4 से 6 इंच उठी हुई होनी चाहिए.
छाछया- इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्णी धब्बे दिखाई देने लगते है. रोग अधिक होने पर पत्तियां पीली पड़कर झड़ जाती हैं.
रोकथाम- इसके प्रकोप से बचने के लिए केराथियॉन एल सी 1 मिलीलीटर या केलेक्सिन एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का स्प्रै करें. आवश्यकतानुसार इसीको 15 दिन के अन्तराल पर दुबारा लगाएं
श्याम वर्ण (एन्थ्रोक्लोज)- इस रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते है और पत्तियाँ झड़ने लगती हैं. इस रोग से पौधों की शाखएँ ऊपर से नीचे की और सूखने लगती है. पके फलों पर भी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं.
रोकथाम- इस बीमारी से बचाव के लिए मैन्कोजेब या जाईनब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल के 2 से 3 छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें
जीवाणु धब्बा रोग- इस रोग से पत्तियों पर छोटे छोटे जलीय धब्बे बनते हैं तथा बाद में गहरे भूरे रंग के दिखाई देने लगते है. अन्त में रोगग्रस्त पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती है
रोकथाम- इस रोग के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 200 मिलीग्राम, या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का स्प्रे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तर पर करें. मिर्च की फसल में लगने वाले रोग एवं रोकथाम
मिर्च की तुड़ाई – chilli harvest
मिर्च की फसल की पैदावार
मिर्च का उपयोग (use of chili)
हर घर में पाए जाने मसालों में मिर्च का एक अलग ही प्रमुख स्थान है. मिर्च का प्रयोग कड़ी, अचार ,चटनी और अन्य सब्जियों में मुख्य तौर पर किया जाता है. आपको बता दें कि सलाद के लिए हरी मिर्च, अचार के लिए मोटी लाल मिर्च और मसालों के लिए सूखी लाल मिर्च की खेती की जाती है. हरी मिर्च में कैप्सेइसिन रसायन पाया जाता है जिसके कारण मिर्च में तीखापन आ जाता है.
कैप्सेइसिन रसायन में दवाइयां बनाने वाले तत्व भी पाए जाते हैं जैसे कैंसर रोधी और दर्द को तुरंत दूर करने वाले तत्व पाए जाते हैं. यह खून को पतला करने और दिल की बीमारियों को रोकने में भी मदद करता है. मिर्च की खेती करने वाले प्रमुख एशियाई देश जैसे भारत, चीन, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कोरिया, तुरकी, श्रीलंका आदि हैं. भारत मिर्च की खेती की पैदावार करने वाले देशों में प्रमुख देश है. इसके बाद चीन और पाकिस्तान का नाम आता है. आइए जानते हैं मिर्च की सफल खेती कैसे की जाती है. इसकी संपूर्ण जानकारी के लिए हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढें.
नोट – स्थान और मौसम के हिसाब से यह पैदावार घट बढ़ भी सकती है.
मिर्च की खेती – FAQ
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