Apricot Farming : खुबानी गुठली वर्गीय फसल या बागबानी है जिसको ठन्डे क्षेत्रों में उगाया जाता है. अधिक गर्मी में इसका पौधा या तो मर जाता है या फल पैदा नहीं देता है. खुबानी का स्वाद स्वादिष्ट, मीठा, तीखा होता है. खुबानी को खुमानी, खुबानी, चूलू, ऐप्रिकॉट, चोले, रेड बोलेरो एप्रिकॉट (Red Bolero Apricot) आदि नामों से जाना जाता है. बाजार में खुबानी की तगड़ी मांग रहने की वहज से इसकी खेती किसनो के लिए लाभकारी साबित हो रही है. यदि खुबानी की खेती को व्यापारिक दृष्टि से देखा जाये तो यह फायदे का व्यवसाय हो सकता है. अगर आप अपने क्षेत्र में खुबानी की उन्नत खेती (Apricot Cultivation) करने का मन बना रहे तो आपको इसकी खेती से सम्बंधित जानकरी प्राप्त करना होगा.
खुबानी की खेती (Khubani ki Kheti)
खुबानी पीले, सफेद, काले, गुलाबी और भूरे रंग के गुठलीदार फल होते है जिसके अंदरी भाग में एक मोटी गुठली के रूप में बीज मौजूद होता है जो बादाम की तरह दिखता है. खुबानी ‘रोसैसी’ एवं ‘प्रूनस’ परिवार से सम्बन्ध रखता है. खुबानी की खेती/बागवानी सबसे अधिक तुर्की में की जाती है, विश्व की लगभग आधी पैदावार इसी देश में की जाती है. वही भारत में खुबानी की खेती या बागवानी उत्तर के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है. ख़ुबानी में कई प्रकार के विटामिन और फाइबर मौजूद होते है जो स्वास्थ के लिए लाभकारी होते है. खुबानी के सूखे फल मेवा के रूप में उपयोग में लाये जाते है. खुबानी के ताज़े फल जूस, जैम और जैली बनाने के अलावा इससे चटनी भी बनाई जाती है. इन्हीं विशेषताओं की वजह से खुबानी की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय साबित हो रही है.
कैसे करें खेती खुबानी की उन्नत खेती
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जलवायु
शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों जलवायु स्वादिष्ट खुबानी की उन्नत खेती के लिए अच्छी होती है. खुबानी के पौधों के समुचित विकास तथा उत्पादन के लिए 100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा तथा 16.6-32.3 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है.
भूमि का चयन
खुबानी को अलग अलग प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. लेकिन कार्बनिक पदार्थों से भरपूर 6.0 से 7.0 पीएच मान वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है.
कैसे करें खेत की तैयारी
खुबानी की खेती के लिए खेत तैयार करने के पश्चात खुबानी के पौधों की रोपाई से ठीक 1 महीने पहले 6 मीटर x 6 मीटर की दूरी से 1 मीटर x 1 मीटर x 1 मीटर आकार के गड्ढे खोद लें.
खुबानी की किस्में
- हिमाचल प्रदेश- शुष्क समशीतोष्ण: कैशा, सुफैदा, शकरपारा और चर्मगाज, मिडहिल्स: शकरपारा, न्यू कैसल और अर्ली शिपली, हाई हिल्स: सुफैदा, नारी, चर्मगाज़, रॉयल, कैशा और नगेट
- उत्तर प्रदेश: मूरपार्क, अर्ली शिपले, कैशा, चौबटिया मधु, चौबटिया केसरी, चौबटिया अलंकार, चारमगाज़ और एम्ब्रोज़.
- जम्मू एंड कश्मीर कश्मीर: शकरपारा, तुर्की, रोगन, ऑस्ट्रेलियाई और चारमगाज़
- लद्दाख : नर्मू, खांते, रकचाकर्पा, मरगुलम, हलमन और टोकपोपा
- मिडहिल्स के लिए किस्में जल्दी पकने वाली : बेलादी और बैती, देर से पकने वाली: अल्फ्रेड और फार्मिंगडेल
खुबानी के पौधों को रोपाई का समय
खुबानी के पौधों की रोपाई का सबसे अच्छा समय मार्च जुलाई और अगस्त का महीना होता है. अगर सिचाई की अच्छी व्यवस्था है तो मार्च के महीने में खुबानी के पौधों की रोपाई कर सकते है. अगर जिस क्षेत्र में पानी की कमी है तो आप इसके पौधों को जून के महीने में लगा सकते है. क्योकि यह बारिश का सीजन होता है.
खुबानी के पौधे तैयार करने का तरीका
अगर आप खुबानी की खेती करने का मन बना रहे है तो आप खुबानी के पौधों को किसी मान्यता प्राप्त नर्सरी से खरीद सकते है. खुबानी के पौधों की रोपाई नर्सरी में कलम तैयार की जाती है, इसकी नर्सरी कलम बीज, ग्राफ्टिंग, कलम दाब और गुटी बांधने की विधि से तैयार की जाती है.
खुबानी के पौधों की रोपाई का तरीका
खुबानी के पौधों की रोपाई करने के लिए तैयार गड्ढों में 50-60 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट के मिश्रण को प्रति गड्डे की दर से भर दें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से बैठ जाये. इन गड्ढों को पौध की रोपाई से करीब एक महीने पहले तैयार कर लें. नमी को सुरक्षित रखने के लिए तैयार गड्ढों पुलाव से ढक दें.उसके बाद खुबानी के पौधों की रोपाई कर देनी चाहिए.
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
खुबानी के पौधों के अच्छे विकास और बढ़िया पैदावार के लिए प्रति वर्ष उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता होती है. 10 कि.ग्रा. गोबर की सड़ी हुई खाद , 90 ग्राम नाइट्रोजन, 30 ग्राम फ़ॉस्फोरस, 90 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ साल के हिसाब से बढ़ाकर 6 वर्ष तक डाली जाती है. गोबर की सड़ी हुई खाद, फ़ॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा दिसम्बर-जनवरी तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा फूल आने के पहले, शेष आधी मात्रा एक माह बाद देनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
खुबानी की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाओं (chemical drugs) का उपयोग कर सकते है. इसके अलावा प्राकृतिक रूप से खरपतवार नियंत्रण के समय समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए.
सिंचाई
खुबानी के पौधों को सिचाई की विशेष जरूरत अप्रैल से मई महीने में होती है, जब पौधों पर फल आना शुरू हो जाता है. खुबानी के पौधों की सिचाई मिट्टी, पौधों की आयु और मौसम पर निर्भर करती है. गर्मी के मौसम (मई से जून) में पौधों की सिचाई 8 से 10 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए.
खुबानी की खेती में कीट और रोग
खुबानी के पौधों पर लगने वाले कीट और रोग जिनमें आर्मिलारिया रूट रोट, यूटाइपा डाइबैक, ब्राउन रोट ब्लॉसम, फाइटोफ्थोरा रूट और क्राउन रोट, पके फल सड़न, शॉट होल डिजीज, पाउडर मिड्यू, बैक्टीरियल कैंकर, रस्ट, प्लम पॉक्स वायरस, यूरोपियन ईयरविग, फ्रूट ट्री लीफ रोलर, ग्रीन फ्रूट वर्म आदि रोग है. इन कीट और रोग से फसल को बचाने के लिए अपने निकटतम बागवानी / कृषि विभाग से संपर्क कर सकते है.
खुबानी की खेती में तुड़ाई (Harvesting Apricot)
रोपाई के करीब पांचवें वर्ष बाद खुबानी का पौधा फल देना शुरू कर देते है. खुबानी के पौधे 8 से 10 की उम्र में सबसे अधिकतम फल देते है. आमतौर पर खुबानी के फल मई-जून के अंत तक पक जाते हैं. खुबानी के फलों की तब ही तोडना चाहिए जब फल पूर्ण विकसित होकर हरे से पीले रंग में बदल जाये.
खुबानी की खेती में उपज
खुबानी की पैदावार मौसम, किस्म और कृषि प्रबंधन पद्धतियों पर निर्भर करती है. अगर खुबानी के पौधों की अच्छी देखभाल की जाये तो 50 से 80 किग्रा प्रति पौधा अथवा 15-25 टन प्रति हेक्टेयर की पैदावार प्राप्त की जा सकती है
भारत में खुबानी कहाँ उगाया जाता है
खुबानी भारत के हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र. में उगाया जाता है.
Apricot Local Names in India
Jardaloo, Khubani, Khumani (Hindi), Jaldharu pandu (Telugu), Saara Paruppu,Sarkkarai Badami (Tamil), Jardalu (kannada), Mutta Pazham, Sheema Pazham (Malayalam), Jardaloo (Gujarati), Jardaloo (Marathi)
खुबानी की खेती कब और कैसे करें इसकी सम्पूर्ण जानकारी इस लेख में दी गई है, हम उम्मीद करते है कि खुबानी की उन्नत खेती कैसे करें (How to do Apricot Farming) से संबंधित जानकारी किसान भाइयों को पसंद आई होगी. यदि इस लेख से सम्बंधित आपका कोई सवाल है तो आप हमें नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट कर पूछ सकते है.