Khubani ki Kheti (Apricot Farming): खुबानी की खेती (Apricot Cultivation) भारत के शुष्क समशीतोष्ण और मध्य-पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े आसानी से की जाती है. शिमला और हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में इसके पौधे जंगली रूप से उग आता है. अगर पुरे विश्व की बात करे तो खुबानी की खेती सबसे अधिक तुर्की में की जाती है तथा भारत में इसकी खेती हिमालय वाले क्षेत्रों की जाती है, जिसमे उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर राज्य शामिल है. यदि खुबानी की खेती (Apricot Cultivation) को व्यपारिक दृष्टि से देख जाये तो यह बहुत सीमित है. यदि आप खुबानी की खेती करने का मन बना रहे तो आप इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें क्योकि इस आर्टिकल में खुबानी की खेती कैसे करे है (Apricot Farming in Hindi) और खुबानी की कीमत के बारे में सम्पूर्ण जानकरी दे रहे है. जाने Khubani ke Fayde

खुबानी की खेती की पूरी जानकारी – Apricot Farming in Hindi
अगर आप खुबानी की खेती (Khubani ki Kheti) करना चाहते है तो और खुबानी की खेती के आधुनिक तरीके जानना चाहते हो आप इस आर्टिकल को अवश्य पढ़ें क्योकि आप के लिए खुबानी की खेती कब और कैसे की जाती है, इसके लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, खाद व उर्वरक. खुबानी की खेती के लिए कितना पीएच मान होना चाहिए और खुबानी की रोपाई कैसे करें आदि की जानकरी इस लेख में देने वाले है तो चलिए जानते है खुबानी की खेती कैसे करें.
जलवायु (Climate Requirement for Apricot Farming)
स्वादिष्ट खुबानी को शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है. लेकिन खुबानी की खेती के लिए पाला रहित व हल्की सी गर्माहट वाला बसंती मौसम को सबसे बेहतर मना जाता है. पौधों के अच्छे विकास तथा फलों के उत्पादन के लिए औसत गर्म तापमान (16.6-32.3 डिग्री सेल्सियस) उपयुक्त होता है. इन पेड़ों को अपनी वृद्धि अवधि के समय करीब 100 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती.
भूमि का चयन (Soil Requirement for Apricot Farming)
खुबानी को अलग अलग प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. लेकिन अच्छी जाल निकासी और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए.
खेत की तैयारी (Land Preparation for Apricot Farming)
खुबानी के पौधों की रोपाई से ठीक 1 महीने पहले 6 मीटर x 6 मीटर की दूरी से 1 मीटर x 1 मीटर x 1 मीटर आकार के गड्ढे खोद लें.
खुबानी की किस्में (Varieties of Apricot in India)
हिमाचल प्रदेश-
शुष्क समशीतोष्ण: कैशा, सुफैदा, शकरपारा और चर्मगाज
मिडहिल्स: शकरपारा, न्यू कैसल और अर्ली शिपली
हाई हिल्स: सुफैदा, नारी, चर्मगाज़, रॉयल, कैशा और नगेट
उत्तर प्रदेश: मूरपार्क, अर्ली शिपले, कैशा, चौबटिया मधु, चौबटिया केसरी, चौबटिया अलंकार, चारमगाज़, तुर्की, बेबेको और एम्ब्रोज़.
जम्मू एंड कश्मीर
कश्मीर: शकरपारा, तुर्की, रोगन, ऑस्ट्रेलियाई और चारमगाज़
लद्दाख : नर्मू, खांते, रकचाकर्पा, मरगुलम, हलमन और टोकपोपा
मिडहिल्स के लिए किस्में
जल्दी पकने वाली : बेलादी और बैती
देर से पकने वाली: अल्फ्रेड और फार्मिंगडेल
खुबानी के पौधों को रोपाई का समय
खुबानी की रोपाई जनवरी से लेकर जुलाई, अगस्त महीने तक की जा सकती हैं
खुबानी के पौधे तैयार करने का तरीका
आम तौर पर खुबानी के पौधे ग्राफ्टिंग या बडिंग विधि से तैयार किये जाते है. जिसमें टी-बडिंग, टंग ग्राफ्टिंग और चिप बडिंग का इस्तेमाल किया जाता जाता है. इसके अलावा आप किसी मान्यता प्राप्त नर्सरी से खुबानी के पौधों खरीद कर खेत में रोपाई कर सकते है.
खुबानी के पौधों की रोपाई का तरीका
खुबानी के पौधों के लिए तैयार गड्डों में 50-60 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट और 10 मिलीलीटर चोरापाइरिपोस घोल (10 मिली / 10 लीटर पानी) के मिश्रण को प्रति गड्डे की दर से भर दें. ताकि मिट्टी अच्छी तरह से बैठ जाये. इन गड्डों को पौध रोपाई से करीब एक महीने तैयार कर लें. नमी को सुरक्षित रखने के लिए तैयार गड्डों पुलाव से ढक दें.
खाद एवं रासायनिक उर्वरक (Manures and Fertilizers in Apricot Farming)
खुबानी के पौधों के अच्छे विकास और बढ़िया पैदावार के लिए प्रति वर्ष उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता होती है. अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 10 कि.ग्रा. तथा एन.पी.के. की मात्रा 90:30:90 ग्राम/पौधे की दर दें. गोबर की खाद और फास्फोरस ,पोटाश की पूरी मात्रा दिसम्बर-जनवरी में देनी चाहिए और नाइट्रोजन की आधी मात्रा फूल शुरू होने पहले तथा शेष आधी मात्रा एक महीने बाद देनी चाहिए
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Apricot Farming)
खुबानी की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाओं (chemical drugs) का इतेमाल कर सकते है. इसके अलावा आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए.
सिंचाई (Irrigation in Apricot Farming)
खुबानी के पौधों की सिचाई की जरूरत विशेष रूप से अप्रैल से मई के महीने में होती है जब पौधों पर फल आना शुरू हो जाता है. खुबानी के पौधों की सिचाई मिट्टी, पैधों आयु और मौसम पर निर्भर करती है. गर्मी के मौसम ((मई से जून)) में पौधों की सिचाई 8 से 10 दिनों के अंतराल पर कर देनी चाहिए. बारिश के मौसम में खेत में पानी न भरने दे.
खुबानी की खेती में कीट और रोग (Pests and Diseases in Apricot Farming)
खुबानी के पौधों पर लगने वाले कीट और रोग जिनमें आर्मिलारिया रूट रोट, यूटाइपा डाइबैक, ब्राउन रोट ब्लॉसम, फाइटोफ्थोरा रूट और क्राउन रोट, पके फल सड़न, शॉट होल डिजीज, पाउडर मिड्यू, बैक्टीरियल कैंकर, रस्ट, प्लम पॉक्स वायरस, यूरोपियन ईयरविग, फ्रूट ट्री लीफ रोलर, ग्रीन फ्रूट वर्म आदि है. इन कीट और रोग से फसल को बचने के लिए निकटतम बागवानी / कृषि विभाग से संपर्क कर सकते है.
खुबानी की खेती में तुड़ाई (Harvesting in Apricot Farming)
खुबानी के पौधे रोपाई के करीब पांचवें वर्ष के बाद फल देना शुरू कर देते है. खुबानी के पौधे 8 से 10 की उम्र में अधिकतम फल देते है. आम तौर पर खुबानी के फल मई-जून के अंत तक पक जाते हैं. खुबानी के फलों की तब तोडना चाहिए जब वे हरे से पीले रंग में बदल जाये.
खुबानी की खेती में उपज (Yield in Apricot Farming)
खुबानी की पैदावार मौसम, किस्म और कृषि प्रबंधन पद्धतियों पर निर्भर करती है. खुबानी की खेती में 50 से 80 किग्रा/पौधा अथवा 15-25 टन/हेक्टेयर की पैदावार प्राप्त की जा सकती है
भारत के खुबानी उत्पादक प्रमुख राज्य
हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र.
Apricot Local Names in India
Jardaloo, Khubani, Khumani (Hindi), Jaldharu pandu (Telugu), Saara Paruppu,Sarkkarai Badami (Tamil), Jardalu (kannada), Mutta Pazham, Sheema Pazham (Malayalam), Jardaloo (Gujarati), Jardaloo (Marathi)
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