अंगूर की खेती / Grapes Farming / Angoor ki Kheti : अंगूर खेती / Grapes Cultivation बागवानी फसलों में से एक है. जो भारत के कई राज्यों में की जा रही है. परन्तु महाराष्ट्र अंगूर की खेती के लिए भारत में ही नहीं विदेशों में प्रसिद्ध है. ऐसा माना जाता है कि महाराष्ट्र का नासिक जिला देश का लगभग 70 अंगूर का उत्पादन करता है. नासिक की जलवायु मिट्टी अंगूर की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है. अगर आप अंगूर की खेती से अच्छी कमाई करना चाहते है तो आपको अंगूर की खेती की खेती से सम्बंधित सभी जानकारी पता होती चाहिए तभी आप अंगूर की उन्नत खेती पाएंगे. अंगूर की उन्नत खेती करने की इच्छा रखते है तो आप इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें. अंगूर की खेती करने के साथ आप angoor khane ke fayde की जानकारी प्राप्त कर सकते है.

अंगूर की खेती – Angoor ki kheti
अंगूर की खेती ने भी भारत में अपना एक प्रमुख स्थान बाना लिया है. भारत में अंगूर की खेत का क्षेत्रफल प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. किसान अंगूर की आधुनिक खेती से अच्छा उत्पादन कर बंपर कमाई कर रहे हैं. अंगूर की खेती व्यापारिक दृष्टि से भी बहुत लाभदयाक है. क्योकि इससे शराब, बियर, सिरका, किशमिश, और अन्य कई प्रोडक्ट बनाये जाते है. भारत के अलावा अंगूर की खेती फ्रांस, यू.एस.ए, टर्की, दक्षिण अफ्रीका, चीन, पुर्तगाल, अर्जेनटीना, इरान, इटली और चाइल आदि देशों में की जाती है. इनमें से चीन अंगूर की खेती करने वाला सबसे बड़ा देश है. इसके अलावा आप Lemon Grass ki Kheti , Kali Haldi ki Kheti , Kinnow ki Kheti, Methi ki Kheti, Safed Musli ki Kheti के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें.
अंगूर की खेती की पूरी जानकारी – Grapes Farming in Hindi
अगर आप अंगूर की खेती करना चाहते है तो और अंगूर की खेती के आधुनिक तरीके जानना चाहते हो आप ऐस आर्टिकल को अवश्य पढ़ें क्योकि आप के लिए अंगूर की खेतीकब और कैसे की जाती है, इसके लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, खाद व उर्वरक. अंगूर की खेती के लिए कितना पीएच मान होना चाहिए और अंगूर के पौधे कहा से खरीदें आदि की जानकरी इस लेख में देने वाले है तो चलिए जानते है अंगूर की खेती कैसे करें.
अंगूर की खेती के लिए जलवायु
अंगूर की बागवानी (Grape Farming) के लिए गर्म शुष्क, वर्षा रहित तथा अधिक ठण्ड वाले मौसम की आवश्यकता होती है. मई-जून में फसल पकने के समय होने वाली वर्षा हानिकारक होती है. इससे फल की मिठास कम और फल चटक जाते है. अंगूर की बनावट जलवायु पर बहुत निर्भर करती है.
अंगूर की खेती के लिए आवशयक मिट्टी
अंगूर की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. अंगूर की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट,चिकनी बलुई मिट्टी उपयुक्त मानी गई है. अंगूर की खेती रेतीली तथा बजरीदार मिट्टी में की जा सकती है. अंगूर की खेती के लिए उचित जल निकासी की व्यवस्था होना चाहिए. अंगूर की खेती के लिए पीएच मान 6.5 से 8 के बीच होना चाहिए.
अंगूर की खेती के लिए खेत कैसे तैयारी करें
अंगूर की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल कर खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें ताकि उसमें मौजूद पुरानी अवशेषों, खरपतवार और कीट नष्ट हो जाये. इसके बाद 50 x 50 x 50 सेंटीमीटर के खेत में गड्ढे खोदे. खोदे गए गड्ढों के लिए खाद कैसे तैयार करें- सड़ी गोबर की खाद (15 किलोग्राम), 250 ग्राम नीम की खली, 50 ग्राम फॉलीडाल कीटनाशक चूर्ण, 200 ग्राम सुपर फॉस्फेट व 100 ग्राम पोटेशियम सल्फेट का मिश्रण बनाकर प्रति गड्ढे में डालें. अंगूर के पौधे लगाने से 15-20 दिन पहले गड्ढों में पानी भरें.
अंगूर के पौधों की रोपाई का समय
अंगूर की पौध की रोपाई अक्टूबर से जनवरी तक कभी भी कर सकते है.
अंगूर की उन्नत किस्में
अंगूर की खेती (angur ki kheti) से अधिक पैदावार लेने के लिए अच्छी प्रजातियों के बारे में जानना बहुत जरुरी है. अंगूर की खेती के लिए कुछ किस्मों के बारें में बताने जा रहे है जो देश के प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय तैयार किया है.
अरका नील मणि: यह वैरायटी ब्लैक चंपा और थॉम्पसन बीजरहित किस्मो को क्रॉस कराकर तैयार किया है. इसकी औसतन उपज लगभग 28 टन/हेक्टेयर है. इसको शराब बनाने के काम में लिए जाता है.
अनब-ए-शाही: अंगूर की इस वैरायटी की खेती आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक जैसे आदि राज्यों में की जाती है. यह वैरायटी अलग अलग जलवायु के अनकूल है. अंगूर की यह किस्म पूर्णरूप से विकसित हो जाती है तो इसकी बेरियां लम्बी, मध्यम लंबी, बीज वाली और एम्बर रंग दिखाई देती है. इसके जूस साफ और 14-16% TSS सहित मीठा होता है. इस वैरायटी से औसतन पैदावार 35 टन तक ली जा सकती है
बंगलौर ब्लू: अंगूर की यह वैरायटी कर्नाटक में सबसे अधिक उगाई जाती है. इसकी बेरियां पतली त्वचा वाली छोटे आकार की, गहरे बैंगनी, अंडाकार और बीजदार वाली होती है. इस वैरायटी के अंगूर का रास बैंगनी रंग वाला, साफ सुगंधित 16-18% टीएसएस वाला होता है. यह वैरायटी एन्थराकनोज से प्रतिरोधी है लेकिन कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील होती है.
भोकरी: अंगूर की इस किस्म खेती तमिलनाडू में की जाती है. इस वैरायटी की बेरियां पीली हरे रंग की, मध्यम लंबी, बीजदार और मध्यम पतली त्वचा वाली होती है. इसका जूस साफ और 16-18% टीएसएस वाला होता है. यह किस्म कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील होती है. इस किस्म की औसतन पैदावार 35 टन/ हेक्टेयर/ वर्ष है.
गुलाबी: यह वैरायटी की खेती तमिलनाडू में सबसे आधी की जाती है. इस किस्म की बेरियां छोटे आकार वाली, गहरे बैंगनी, गोलाकार और बीजदार होती है. जिसका टीएसएस 18-20% के मध्य होता है. यह किस्म क्रेकिंग के प्रति संवदेनशील नहीं होती है परन्तु कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील होती. इस वैरायटी से औसतन उपज करीब 10-12 टन/ हेक्टेयर है.
काली शाहबी: इस किस्मो को महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है. इस किस्म की बेरियां लम्बी, अंडाकार बेलनाकार, लाल- बैंगनी और बीजदार होती हैी होती है. इस वैरायटी की औसतन उपज करीब 10-12 टन/ हेक्टेयर तक हो जाती है.
परलेटी: इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में उगाई जाती है. इस वैरायटी की बेरियां बीजरहित, छोटे आकार वाली, थोडा एलपोसोडियल गोलाकार और पीले हरे रंग की होती है. इस वैरायटी की औसतन उपज 35 टन/ हेक्टेयर तक हो जाती है. इसके जूस में 16-18% के बीच टीएसएस होता है.
थॉम्पसन सीडलेस: इस किस्म की खेती महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक आदि राज्यों में की जाती है. इस किस्म की बेरियां इलपसोडियल लंबी, मध्यम त्वचा वाली पीली होती है. यह वैरायटी व्यापक रूप से बीजरहित है. इसके जूस में 20-22% के मध्य टीएसएस होता है. इसका रास मीठा और भूसे रंग का होता है. इस वैरायटी की औसतन पैदावार 20-25 टन/है0 है. इस वैरायटी का इस्तेमाल टेबल प्रयोजन और किशमिश बनाने के लिए किया जाता है. म्यूटेंट टास-ए-गणेश और सोनाका की खेती अधिकतर महाराष्ट्र में की जाती है
भारत में अंगूर की कुछ अन्य वैरायटी है जिमें शरद सीडलेस, परलेट, ब्यूटी सीडलेस, पूसा सीडलेस, पूसा नवरंग, अरका राजसी, अरका कृष्णा, अरका श्याम आदि.
ऐसे करें अंगूर की कलम की कटिंग
-जनवरी महीने में काट छांट से निकली टहनियों से कलमें बनाई जा सकती है.
-कमल के लिए हमेशा स्वस्थ एवं परिपक्व टहनियों का इस्तेमाल करें.
-सामान्यत: 4-6 गांठों वाली 23-45 से.मी. लम्बी कलमों का इस्तेमाल करे.
-कलम में नीचे की कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए
-कलम में हमेसा तिरछा कट होना चाहिए
-तैयार इन कलमों को जमीन की सतह से ऊंची क्यारियों में लगाएं
-एक वर्ष पुरानी जड़युक्त कलमों को जनवरी महीने में नर्सरी से निकल कर खेत में लगाए.
अंगूर की बेलों की रोपाई
रोपाई के लिए तैयार किये गड्ढों में अंगूर के पौधों की रोपाई कर दें. रोपाई के तुरंत बाद अंकुर के पौधों में की सिचाई कर देनी चाहिए ताकि पर्याप्त मात्रा में नमी बनीं रहे.
अंगूर की बेलों को साधने का तरीका
अंगूर की बेलों को साधने के लिए पण्डाल, बाबर, टेलीफोन, निफिन एवं हैड आदि विधि प्रचलित हैं. लेकिन व्यवसायिक दृष्टि से पण्डाल विधि को सबसे उपयुक्त मनन गया है. इस विधि में बेलों को साधने के लिए 2.5 से 3 मीटर ऊँचाई पर कंक्रीट के खंभों के सहारे लगी तारों के जाल पर अंगूर की बेलों को फैलाया जाता है. इस पंडाल को अपनी आवश्यकतानुसार बनाये.
अंगूर बेलों की छंटाई
अंगूर की फसल से लगातार अधिक उत्पादन लेने के लिए बेलों की उचित समय पर काट-छाँट बहुत आवश्यक है. लेकिन यह पूरी प्रक्रिया नई कोंपले फूटने से पहले पूरी हो जानी चाहिए. सामान्यतः अंगूर की बेलों काट-छांट जनवरी महीने में की जाती है
अंगूर की सिंचाई
अंगूर की फसल को नवम्बर से दिसम्बर महीने तक जरुरत होती है. अंगूर की फसल पर फूल तथा फल बनने (मार्च से मई )
के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. नहीं तो फसल के उत्पादन पर असर पड़ेगा. तापमान तथा पर्यावरण को ध्यान में रखकर 8-10 दिन के अंतराल पर फसल की सिंचाई करनी चाहिए. फल पूर्ण रूप से विकसित होने पर फसल में पानी बंद कर दें. ऐसा नहीं किया तो फल फटने लगा जायेंगे. अंकुर की तोड़ाई के बाद सिचाई अवश्य करें.
अंगूर की फसल के लिए खाद एवं उर्वरक
अंगूर की फसल मिट्टी से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को ग्रहण करती है. भूमि की उर्वराशक्ति को बनाये रखने और लगातार फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए खाद और उर्वरकों के रूप में तत्वों की पूर्ति करनी चाहिए.
पण्डाल विधि से साधी गई एवं 3 x 3 मी. की दुरी पर लगाई गयी अंगूर की 5 वर्ष की बेल में करीब 500 ग्राम नाइट्रोजन, 700 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 700 ग्राम पोटेशियम सल्फेट एवं 50 – 60 कि.ग्रा. गोबर की खाद की जरुरत होती है.
अंगूर की फसल में खाद कब दें
अंगूर बेलों की छंटाई के तुरंत बाद नाइट्रोजन एवं पोटाश की आधी मात्र एवं फास्फोरस की सारी मात्र डाल देनी चाहिए. शेष मात्र फल लगने के बाद देनी चाहिए. खाद एवं उर्वरकों को अंगूर की वेळ के मुख्य तने से करीब 15-20 सेमी दूर पर डालें. खाद एवं उर्वरकों डालने के बाद सिचाई अवश्य करें.
अंगूर की फसल में खरपतवार नियंत्रण
ट्रेक्टर चलित साधनों से अंगूर की फसल में खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है. अंगूर के मुख्य तने के नीचे खरपतवारों को हाथ से या फावड़े से हटाया जा सकता है.
अंगूर की फसल की कटाई
अंगूर की कटाई आमतौर पर उत्तरी क्षेत्र में अगस्त और अक्टूबर और दक्षिणी क्षेत्र में फरवरी और अप्रैल के बीच की जाती है.
अंगूर की फसल से उत्पादन
अंगूर की फसल का उत्पादन उसकी वैरायटी, मिट्टी, जलवायु और पर्यावरण आदि पर निर्भर करता है लेकिन सामान्यतः अंगूर की फसल से औसतन पैदावार रोपाई के दूसरे या तीसरे वर्ष में करीब 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर हो जाती है. एक अंगूर के पौधे का जीवन 15 वर्ष होता है.
Grapes Farming – FAQ
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Sar kis mahine mein angur ka paudhe ko lagaen