Basil Cultivation Tips: तुलसी एक ऐसा धार्मिक एवं औषधीय पौधा है जो प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में मिलेगा. पुराने समय से लेकर कर वर्तमान समय तक आयुर्वेदिक पौधों का बड़ा ही विशेष महत्व है जिनको विभिन्न आयुर्वेदिक औषधि बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. मांग के हिसाब से पूर्ति करने के लिए तुलसी की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है. जो एक चर्चा का विषय बनी हुयी है. तुलसी की उन्नत खेती करने के इच्चुक किसान इस लेख को अंत तक पढ़ें.
तुलसी की खेती (Tulsi ki Kheti)
पारंपरिक खेती को छोड़कर आजकल किसान औषधीय फसलों (Medicinal Plants) की तरफ ज्यादा रुख कर रहे है क्योकि औषधीय फसलें कम समय, कम निवेश में अधिक मुनफा देने वाली होती है. तुलसी की खेती भी इसकी प्रकार की है जो किसनो को तगड़ी कमाई कराती है. तुलसी के पौधों में कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते है. तुलसी का उपयोग यूनानी औऱ आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जा रहा है. इसके अलावा धार्मिक अनुष्ठानों, चाय बनाने के लिए बड़े पैमाने पर तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है. आजकल बड़ी-बड़ी कंपनियां औषधि के रूप में तुलसी का अर्क बेच रही है. तुलसी का तना, फूल, पत्ती, जड़, बीज किसी न किसी रूप में उपयोग में लाया जाता है. इसलिए तुलसी की मांग बाजार में बहुत आधी होती है. ऐसे में तुलसी की खेती करना किसानो के लिए लाभकारी साबित हो सकती है.
तुलसी की खेती कैसे करें
प्रति एकड़ तुलसी की खेती लाभ, तुलसी की खेती से कमाई, तुलसी की फसल कहां बेचे, तुलसी की खेती में खरपतवार नाशक दवाई, काली तुलसी की खेती, काली तुलसी की मंडी कहां है, तुलसी का रेट आज का, तुलसी खरीदने वाली कंपनी का कांटेक्ट नंबर, तुलसी की वैज्ञानिक खेती कैसे करें. इस प्रकार के सवालों के लिए नीचे दी गई जानकारी को पढ़ें
तुलसी की खेती के लिए मृदा व जलवायु
तुलसी की खेती (Tulsi Farming) के लिए 5.5 से 7 P.H. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. अगर तुलसी उन्नत खेती के लिए जलवायु की बात करें तो उष्ण कटिबंधीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय दोनों जलवायु उत्तम मानी जाती है, अधिक सर्दी इसकी खेती के लिए हानिकारिक होती है, वही बारिश का मौसम इसकी खेती के लिए लाभदायक होता है क्योकि बारिश के मौसम में तुलसी के पौधों का विकास बहुत तेज़ी होता है.
तुलसी की उन्नत किस्में
तुलसी की उन्नत खेती के लिए तुलसी की उन्नत किस्मों इस प्रकार है – जंगली तुलसी, राम तुलसी या वन तुलसी, श्री तुलसी या श्यामा तुलसी, काली तुलसी, स्वीट फ्रेंच बेसिल अथवा बोवई तुलसी, कर्पूर तुलसी आदि.
तुलसी की खेती के लिए जमीन की तैयारी
तुलसी एक औधधि पौधा है जिसकी खेती के लिए खेत की पहली जुताई करते समय 15-20 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद प्रति हैक्टेयर से डालें. तुलसी की बुवाई के लिए आखिरी जुताई कर खेत को समतल कर लें.
तुलसी के लिए मात्रा एवं उपचार
तुलसी की एक एकड़ खेती के लिए करीब 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है अगर बीज घर पर बनाया है तो मिट्टी से पैदा होने वाली बिमारियों की रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीज को मैनकोजेब 5 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर लें.
तुलसी की खेती का सही समय
तुलसी की खेती के लिये जून-जुलाई तक समय सबसे बेहतर माना जाता है, क्योंकि मानसून की बारिश पड़ने से तुलसी के पौधों विकास अच्छा होता है और इससे पैदावार भी अच्छी होती है.
तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय औऱ तरीका
तुलसी का बीज बहुत महीन और हल्क़ा होता है इसलिए इसकी सीधे बुवाई नहीं की करते. तुलसी की रोपाई के लिए खुद नर्सरी तैयार करनी होगी या फिर आप किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से इसकी पौध खरीद सकते है. तुलसी के पौधों की रोपाई समतल औऱ मेड़ पर की जा सकती है. अगर आप तुलसी के पौधों की रोपाई मेड़ पर करना चाहते है तो रोपाई से पहले खेत में 1 से 1.5 फ़ीट की दूरी रखते हुए मेड़ को तैयार कर लें. उसके बाद पौधे से पौधे की दूरी 30-40 सेंटीमीटर रखते हुए रोपाई कर दें.
तुलसी की खेती के लिए खाद
तुलसी की खेती के लिए जैविक खाद के रूप में 15-20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालें अगर आप रासायनिक खाद का उपयोग करते है तो उसके लिए 75-80 कि. ग्रा, नत्रजन 40-40 कि. ग्रा, फास्फोरस व पोटाश की जरुरत होगी. रोपाई से पहले एक तिहाई नत्रजन तथा फास्फोरस व पोटास की पूरी मात्रा जमीन में मिला दे तथा शेष नत्रजन की मात्रा 2 बार में खड़ी फसल में डालें.
तुलसी के पौधों की सिंचाई
पौधों की रोपाई के तुरंत बाद सिचाई करनी चाहिए जिससे पौधों सूखेंगे नहीं और सही से जम सकेंगे. गर्मी के मौसम पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए 4 से 5 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिये. तुलसी के पौधों को एक वर्ष में करीब 10 से 12 सिंचाई की जरुरत होती है. बाकी की सिचाई मौसम के आधार पर करते रहना चाहिए, बारिश के मौसम में जल भराव की समस्या रहती है इसलिए खेत से जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल की पहली निराई-गुड़ाई रोपाई के एक महीने बाद कर देनी चाहिए ताकि फसल में खरपतवार पैदा न हो वही दूसरी निराई-गुड़ाई पहली निराई के 3-4 सप्ताह बाद कर देनी चाहिए.
पौधों की देखभाल अथवा रोगों की रोकथाम
- पत्ता लपेट सुंडी :- यह सुंडी पत्तों, कली और फसल को अपना भोजन बनाती है यह तुलसी की पत्तियों की सतह पर हमला करती है जिससे पत्तियां मुड़ जाती है.
- तुलसी के पत्तों का कीट :- यह कीट पत्तियों को खाकर अपना मॉल उन्ही पर छोड़ देते है जिससे पत्तियां को मुड़कर सुख जाती है.
- पत्तों के धब्बे :- इस बीमारी से फंगस जैसा पाउडर पत्तियों और पौधों के लिए काफी हानिकारिक होता है.
- झुलसा रोग :- यह एक प्रकार की फंगस बीमारी है जो बीज और नए पौधों को नष्ट कर देती है.
- जड़ गलन :- जल निकास की उचित व्यवस्था न होने के कारण पौधों की जड़ें गलने लगती है. इसके लिए फायटो सेनिटरी विधि का उपयोग करना चाहिए.
तुलसी की कटाई / Harvesting Basil
जब तुलसी के पौधों पर पूरी तरह से फूल आ जाये और निचे के पत्ते पिले पड़ने लगे तो भूमि से 15 से 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई रखते हुए इसकी कटाई कर लेनी चाहिए. रोपाई के 10-12 सप्ताह बाद तुलसी की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है.
तुलसी खेती से पैदावार
तुलसी की खेती से औसत पैदावार 20-25 टन प्रति हेक्टेयर हो जाती है वही तेल की पैदावार 80-100 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. इसके तेल का बाज़ारी भाव 450 से 500 रूपए प्रति किलोग्राम रहता है.