Aloe Vera Cultivation Tips : एलोवेरा एक ऐसा उपयोगी पौधा है जिसकी मौजूदा समय में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजार बड़े पैमाने पर डिमांड है. जिसका इस्तेमाल चिकित्सा और कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट बनाने के लिए किया जाता है. ऐसे में जो किसान इसकी खेती कर रहे है वह कम निवेश में मोटा प्रॉफिट कमा रहे है. एलोवेरा की सबसे अच्छी बात है कि इसको एक बार लगाकर करीब 5-6 साल तक मुनाफा कमा सकते हैं. अगर आप भी एलोवेरा की उन्नत खेती कर अच्छा लाभ कामना चाहते है तो आइये जानते है एलोवेरा की खेती कब और कैसे की जाती है.
घृतकुमारी (एलोवेरा) की खेती (Aloe Vera ki kheti)
एलोवेरा को हिंदी में घृतकुमारी और ग्वारपाठा के नाम से जानना जाता हैं. एलोवेरा में कई प्रकार के औषधीय गुण मौजूद होते जो शरीर के लिए काफी लाभकारी माने जाते है. एलोवेरा का इस्तेमाल वैदिक काल से चाला आ रहा लेकिन वर्तमान समय में इसकी डिमांड बहुत अधिक रहने लगी है. इसलिए एलोवेरा की खेती किसनो के लिए लाभकारी हो रही है. भारत में एलोवेरा की उन्नत खेती जाब, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तराखंड में हो रही है.
एलोवेरा की खेती की पूरी जानकारी
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एलोवेरा फार्मिंग के लिए जलवायु
एलोवेरा की उन्नत खेती के लिए गर्म आर्द्र से शुष्क और गर्ग जलवायु उपयुक्त होती है, एलोवेरा की फसल के बेहतर विकास के लिए औसत तापमान 20-22 डिग्री सेंटीग्रेड की आवश्यकता होती है. बता दें, इसकी खेती शुष्क क्षेत्रों से लेकर सिंचित मैदानी क्षेत्रों में आसानी से कर सकते है.
एलोवेरा की खेती के लिए उपयोगी मिट्टी
घृतकुमारी की खेती सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है लेकिन इसकी खेती को व्यावसायिक तौर पर करने के लिए 8.5 पीएच मान से अधिक वाली रेतीली मिट्टी सबसे अच्छी मानी गई है.
ग्वारपाठा की खेती के लिए खेत तैयारी व खाद
एलोवेरा की खेती के लिए खेत तैयार करते समय पहली जुताई से पहले 10-15 टन गोबर की खाद डाल कर जुताई कर दे. अंतिम जुताई कर खेत का समतलीकरण कर लें.
एलोवेरा की उन्नत किस्में
ग्वारपाठा की खेती के लिए हमेसा हाइब्रिड किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि आपको पल्प की मात्रा अधिक प्राप्त हो सकें. भारत में ऐलोवेरा की कई उन्नत किस्मो को विकसित किया जा चूका जिसमें से कुछ इस प्रकार है – आई.सी1-11271,आई.सी.-111280, आई.सी.-111269 और आई.सी.- 111273 का व्यावसायिक तौर पर उत्पादन किया जा सकता है। इन किस्मों में पाई जाने वाली एलोडीन की मात्रा 20 से 23 प्रतिशत तक होती है.
एलोवेरा की रोपाई का समय
एलोवेरा की खेती सर्दियों को छोड़कर साल भर की जाती लेकिन ऐलोवेरा के पौधे को जुलाई-अगस्त में लगाना ज़्यादा उचित होता है. लेकिन इसके पौधों की रोपाई के लिए फरवरी-मार्च का महीना भी उपयुक्त माना गया है.
एलोवेरा की रोपण विधि
एलोवेरा की रोपाई के समय पौधे से पौधे की दूरी का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि पौधा का विकास सही से हो सकें. एलोवेरा के पौधे लगाते समय यह भी ध्यान रखें कि पौधे स्वस्थ है की नहीं. बात दे, ख़रीदा गया एलोवेरा का पौधा 4 महीने से पुराना नहीं होना चाहिए और जिसमें 4 से 5 पत्तियां लगी होनी चाहिए. रोपाई के दौरान एलोवेरा के पौधों के बीच में 40-45 सेमी की दूरी अवश्य रखें
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
घृतकुमारी (ऐलोवेरा) की खेती के लिए मिट्टी में सदैव नमी होनी चाहिए. ऐलोवेरा में आप 10-15 दिनों में सिंचाई कर सकते हैं. ऐलोवेरा का उपयोग औषधि के लिए किया जाता है इसलिए जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद का इस्तेमाल करें.
नराई/गुड़ाई
अधिक उपज लेने के लिए बुबाई के एक महीने बाद पहली नराई/गुड़ाई कर देनी चाहिए. समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए. एलोवेरा की खेती अच्छा उत्पादन लेने के लिए साल में 2-3 गुड़ाई कर देनी चाहिए.
एलोवेरा में रोग एवं कीट प्रबंधन कैसे करें
एलोवेरा की फसल में मैली बग आने का खतरा अधिक रहता है इसके इसकी पत्तियों पर दाग पड़ना. एलोवेरा की फसल को रोग एवं कीट से बचने के लिए 0. 1% पैराथियान या 0.2% मैलाथियान के जलीय घोल का छिड़काव करना आवश्यक है.
एलोवेरा खेती से पैदावार
फसल की अच्छे से देखभाल की गई तो एलोवेरा की एक एकड़ खेती से साल भर में करीब 20000 किलोग्राम घृतकुमारी (ऐलोवेरा) प्राप्त किया जा सकता है.
एलोवेरा की खेती के लिए मार्केटिंग और लागत व कमाई
एलोवेरा एक नगदी फसल होने की वजह से इसकी खेती में अपार संभावनाएं हैं. एलोवेरा की खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में हो रही है. पतंजलि, डाबर, बैद्यनाथ, रिलायंस कई बड़ी-बड़ी कंपनियां किसानों से सीधे ऐलोवेरा की फसल खरीद करती है.कंपनियां है जो एलोवेरा की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कराती है.
ऐलोवेरा की खेती में लागत की बात करें तो लागत 50,000 प्रति हेक्टेयर से शुरू होती है. इसकी मोटी पत्तियों की देश की विभिन्न मंडियों में कीमत लगभग 15,000 से 25,000 रुपए प्रति टन तक मिल जाती है जिससे किसान मोटी कमाई कर सकता है. लेकिन पल्प निकालकर बेचने पर किसानों को 4 से 5 गुना ज्यादा मुनाफा हो सकता है