Ridge Gourd Cultivation Tips : पोषक तत्वों से भरपूर तोरई ग्रीष्म (जायद) और वर्षा (खरीफ) दोनों ऋतुओं में उगाई जाने वाली बेलदार और कद्दूवर्गीय सब्जी फसल है, जिसकी खेती कर किसान लाखों की आमदनी कर सकते है, क्योकि तोरई में पाए जाने वाले औषधीय गुणों की वजह से इसकी मांग छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहर में साल भर बनी रहती है. अगर तोरई की खेती साइंटिफिक तरीके से की जाए तो 70-80 दिनों में एक हैक्टेयर खेत से 100-150 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर अच्छी कमाई कर सकते है. तोरई की खेती करने का मन बनाने वाले किसानों के लिए यह लेख बेहद ख़ास है.
तोरई को नकदी फसलों के श्रेणी में रखा गया है, जिसकी उन्नत खेती कर मध्यप्रदेश, केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, बंगाल एवं उत्तर प्रदेश के किसान ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत के किसान तोरई की साइंटिफिक खेती कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे है. तोरई की अगेती खेती करके भी अच्छी आमदनी की जा सकती है. तोरई की अगेती खेती के लिए आप पॉली हाउस तकनीक का उपयोग कर सकते है. लेकिन उसके लिए आपको तोरई की नर्सरी तैयार करनी होगी. तोरई की खेती कब और कैसे करें से जुडी जानकारी के लिए इस आर्टिकल को आखरी तक पढ़ें.
तोरई की खेती (Ridge Gourd ki kheti)
तोरई को तोरी, तुराई, झींगा, झिंग्गी, लुफा आदि नामो से भी जाना जाता है. जिसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन ए जैसे आदि पोषक तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते है, जिनका स्वास्थ पर सकारात्मक असर होता है, तोरई खाने के फायदे को ध्यान में रखकर बीमारी में डॉक्टर तोरई खाने के लिए बोलते है. अन्य मौसमों की अपेक्षा गर्मियों में तोरई की मांग बढ़ जाती है. इसलिए तोरई की खेती करना किसानो के लिए लाभकारी हो सकती है.
तोरई की साइंटिफिक खेती
Ridge Gourd Farming in Hindi: तोरई की खेती बड़े-बड़े खेती के अलावा छोटी गृह वाटिका में भी की जा सकती है. तोरई की उन्नत तरीके से खेती की जाये तो कम समय मे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. यहा जानिए कौन-कौन सी किस्मों में तोरई की खेती से अच्छी पैदावार दिला सकती है-
तोरई की खेती के लिए कैसी होने चाहिए जलवायु
ग्रीष्म (जायद) और वर्षा (खरीफ) दोनों सीजन में तोरई की खेती जा सकता है. फसल के अच्छे विकास हेतु 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उचित होता है. लो टनल/पॉलीहाउस तकनिकी का उपयोग का ठण्ड के मौसम में तोरई की खेती कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
तोरई फार्मिंग के लिए कैसी होनी चाहिए मिट्टी
आमतौर पर तोरई की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है लेकिन कार्बनिक पदार्थो, जैविक तत्वों से भरपूर, उचित जल निकासी एवं 6 से 7 पी एच मान वाली मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है. नदियों के किनारे तोरई कल्टीवेशन बड़े पैमाने किया जाता है.
तोरई फार्मिंग हेतु कैसे करें खेत की तैयारी
खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से की गहरी जुताई कर कुछ दिन के लिए खेत को धूप लगने के लिए छोड़े दें, ऐसा करने से पुरानी फसल के अवशेष, खरपतवार और कीट नष्ट हो सकेंगे. उसके बाद 15-20 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर की दर से डालकर खेत की हल्की जुताई कर दें. तोरई की रोपाई से पहले खेत की 2-3 बार आडी-तिरछी गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा कर समतल कर लें.
तोरई फार्मिंग हेतु उन्नत किस्में
Ridge gourd Varieties: फसल की पैदावार उसकी किस्मों पर निर्भर करता है अगर आप Ridge Gourd Farming से अच्छी उपज प्राप्त करना चाहते हो तो आप पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजतका, घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, कोयम्बूर 2 आदि किस्मों का चयन कर सकते है.
तोरई के बीजों की बुवाई का तरीका
- किसान तोरई की खेती बीज एवं पौध दोनों से कर सकते है.
- तोरई की एक हेक्टेयर खेती के लिए 2 से 3 किलो बीज की आवश्यकता होती है.
- तोरई के बीजो की रोपाई के लिए खेत में धौरेनुमा क्यारियां तैयार करें.
- मेड के अंदर डेढ़ से दो फीट दूरी रखते हुए 2 इंच गहराई में बीजों की रोपाई करें. ताकि बेल अच्छे से फेल सकें.
- बिजाई के लिए नालियाँ 50 सेमी. चौडी व 35 से 45 सेमी. गहरी होनी चाहिए.
- नालियों में बिजाई के लिए पौध से पौध के बीच 80 सेमी. दूरी रखें.
- नालियों में बीजों की रोपाई खरीफ के मौसम में की जाती है.
- बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें, जिससे बीजों की अंकुरण क्षमता बढ़ेगी.
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तोरई कौन से महीने में लगाएं
तोरई की खेती जायद (ग्रीष्म) और खरीफ (वर्षा) दोनों सीजन में की जा सकती है, इसलिए दोनों ऋतुओं में इसकी बुवाई का समय अलग-अलग होता है. किसान ग्रीष्मकालीन (जायद) सीजन तोरई की बुवाई मार्च वही इसकी वर्षाकालीन (खरीफ) सीजन फसल की बुवाई के लिए जून से जुलाई का समय उत्तम मना गया है. तोरई की अगेती खेती से अधिक मुनफा लेने के लिए लो टनल/पॉलीहाउस तकनिकी का उपयोग कर सर्दियों के मौसम तोरई की खेती कर सकते है. सर्दियों के मौसम में Ridge Gourd Cultivation करने के लिए आपको नर्सरी तैयार करनी होगी.
पॉली हाउस में तोरई की अगेती खेती कैसे करें
पॉली हाउस में तोरई की अगेती खेती करने के लिए पौध तैयार करने के लिए 1:1:1 अनुपात में मिट्टी, बालू व गोबर की खाद का मिश्रण बनाकर तैयार करें, इस तैयार मिश्रण को 15 x 10 से.मी. आकार की पॉलीथीन थैलियों में भर दें. पौधे बनाने के लिए आप नर्सरी ट्रे का भी उपयोग कर सकते है. अब इन थैलियों में करीब 1 से.मी. की गहराई पर बीज बुवाई कर बालू की पतली परत बिछा दें उसे बाद हजारे की सहायता से पानी लगाएं. करीब 4 सप्ताह में तोरई के पौधे खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं. जब फरवरी महीने में पाला पड़ने की सम्भावना हो जाये तो, तोरई पौध की रोपाई खेत में बनी नालियों की मेंढ़ पर कर दें.
बुवाई से पहले तोरई बीज का उपचार
बीज अंकुरण की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए बुवाई से पहले बीज को उपचारित करना बहुत ही अवश्यक है. अगर आप तोरई के हाइब्रिड बीज को बुवाई के लिए उपयोग कर रहे है तो आपको हाइब्रिड बीज को उपचारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है. अगर आप बीज घर के बीज को बुवाई के लिए प्रयोग कर रहे है तो तो बीज को उपचारित करने की आवश्यकता होती है. बीज को थीरम या मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें. इससे बीजों अंकुरण की क्षमता बढ़ेगी है.
खाद एवं उर्वरक की मात्रा
तोरई की अच्छी पैदावार लिए खेत की तैयारी करते समय 15-20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर से खेत में डालें. बुवाई के के समय 40-60 किग्रा. नाइट्रोजन (आधी मात्रा), 30-40 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश का मिश्रण बनाकर एक हैक्टेयर खेत में डालें. नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा को 30-35 दिनों बाद फसल में डालें.
तोरई की फसल में सिंचाई प्रबंधन
तोरई की फसल में पर्याप्त नमी बनाये रखें आवश्यकतानुसार सिचाई करें ताकि फसल से उचित पैदवार मिल सकें. ग्रीष्म काल में 5 से 7 दिन के अंतराल में फसल की सिचाई करें. वही बारिश के मौसम में आवश्यकतानुसार सिचाई करें.
खरपतवार नियंत्रण
तोरई की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खरपतवार नियंत्रण बेहद जरुरी होता है, इसलिए प्राकृतिक रूप से खरपतवार नियंत्रण के लिए समय समय पर निराई-गुड़ाई करें. खरपतवार का अधिक प्रकोप होने पर रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर सकते है.
तोरई की फसल को रोग एवं कीटों से बचाने का उपाय
- बरसात के सीजन में तोरई की फसल में फफूंदी रोग आने की अधिक संभावना बनी रहती है. इसके लिए मेन्कोजेब या बाविस्टीन या सल्फर+टेबुकोनाज़ोल के मिश्रण 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर हर 15 से 20 दिन के अंतर पर फसल पर छिड़काव करें.
- तोरई की फसल पर लाल मकड़ी, फल की मक्खी, सफ़ेद ग्रब आदि का प्रकोप अधिक होता है. इन कीटों से वचाव के लिए कार्बोसल्फान 25 ईसी या क्यूनालफास या dimethoate 30% Ec 1.5 लीटर 900 – 1000 लीटर पानी में मिलकर प्रति हेक्टेयर 10-15 दिन के के अंतर पर फसल पर छिड़काव करें.
तोरई की तुड़ाई (Harvesting Ridge Gourd)
तोरई के फलों की तुड़ाई उनके आकर और मंडी भाव के अनुसार करें. वैसे फलों की तुड़ाई 6-7 दिनों के अन्तराल पर कर लेनी चाहिए. तोरई के फलों को तोड़ने के बाद छायादार स्थान पर रखे. इसके अलावा टूटे फलों पर बीच-बीच में पानी छिड़कते रहें ताकि फल ताजे बने रहे.
तोरई की फसल से उत्पादन
तोरई की पैदावार (Ridge Gourd Yield) उसकी वैरायटी पर निर्भर करता है. यदि तोरई की खेती के लिए उन्नत किस्म का चयन किया और उसको वैज्ञानिक तरीके से उगाया गया है तो 150 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हो जाती है.
तोरई की खेती कब और कैसे करें इसकी सम्पूर्ण जानकरी इस लेख में दी गई है, हम उम्मीद करते है कि तोरई की उन्नत खेती कैसे करें (How to cultivate Ridge Gourd) से संबंधित जानकारी किसान भाइयों को आपको पसंद आई होगी. यदि इस लेख से सम्बंधित आपका कोई सवाल है तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में हमसे पूछ सकते है.
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