मूली की खेती / Radish Cultivation / Mooli ki Kheti : मूली की खेती / Radish Farming) की बात करें तो यह जड़ वाली सब्ज़ियों में एक विशेष स्थान रखती है. वैसे तो मूली की खेती (Radish Farming) पुरे भारत की जाती है, लेकिन पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटका, पंजाब और आसाम राज्यों में इसको मुख्य इसको उगाया जाता है. बुबाई के 40-50 दिनों के अंदर इसकी फसल तैयार हो जाती है. आमतौर पर मूली की खेती (Muli ki Kheti) ठण्ड के मौसम में की जाती है, कई उन्नतशील क़िस्में विकसित होने से मूली की खेती पुरे साल की जा सकती है. यदि मूली की खेती (mooli ki kheti) वैज्ञानिक तरीके से की जाये तो इससे अधिक पैदावार लेकर भारी मुनाफा कमाया जा सकता है. चलिए जानते है मूली की खेती कैसे करें.

मूली की खेती कैसे करें ? – Mooli ki Kheti in Hindi
यह एक जल्दी उगने वाली और सदाबहार फसल के रूप में जानी जाती है. मूली (Radish) में विटामिन बी 6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और रिबोफलेविन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. इसके अलावा इसमें एसकॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड और पोटाश्यिम भारी मात्रा में पाया जाता है. पेट की कब्ज, गैस और पथरी की बीमारी में इसका सेवन करने से काफी लाभ मिलता है.
मूली की खेती करके बढ़िया लाभ कमाया जा सकता है क्योकि होटलों, रेसट्रोरेन्ट, ढाबों और घरों में इसका इस्तेमाल कच्चे सलाद, सब्ज़ी, पराठे और अचार बनाने के लिए किया जाता है जिसकी वजह से बाजार में मूली की मांग हमेसा बनी रहती है. इसके अलावा आप Lal Bhindi ki Kheti, Matar ki Kheti, Broccoli ki Kheti, Aloo ki kheti, Shimla Mirch ki Kheti के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें.
मूली की खेती की पूरी जानकारी – Radish Farming in Hindi
मूली की खेती के लिए आवश्यक जलवायु (Required Climate for Radish Cultivation) रे
अधिकतर मूली की खेती (muli ki kheti) ठंडी जलवायु की जाती है लेकिन कुछ नई वैरायटी आने के बात इसकी खेती सालभर की जा सकती है. मूली की खेती (mooli ki kheti) के लिए 10 से 15 सेंटीग्रेड का तापमान उचित माना गया है. अधिक तापमान होने पर पत्तियों की संख्या आवश्यकता से अधिक बढ़ जाती है और मूली कड़वी और कठोर हो जाती है.
मूली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Radish Farming)रे
मूली की फसल को सभी तरह की जमीन में उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए 6.5 से 7.5 पीएचमान वाली जीवांशयुक्त रेतीले दोमट और भुरभुरी मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है. इस प्रकार की मिट्टी में मूली की जड़ें अच्छे से विकसित होती है. इसकी फसल के लिए चिकनी मिट्टी अच्छी होती है क्योकि इस प्रकार की मिट्टी में जड़ों का आकार बिगड़ जाता है.
मूली की उन्नत किस्में – Improved Varieties of Radish
उन्नत किस्में | बुवाई का समय | मूली पकने का समय |
पूसा हिमानी (40 से 70 दिनों में तैयार) | दिसंबर-फरवरी | जनवरी-अप्रैल |
पंजाब पसंद (45-50 दिनों में तैयार) | मार्च का दूसरा पखवाड़ा | अंतिम अप्रैल-मई |
पूसा चेतकी (45-50 दिनों में तैयार) | अप्रैल-अगस्त | मई से सितंबर |
पंजाब सफेद मूली -2, पंजाब पसंद, जापानी व्हाइट | मध्य सितंबर-अक्तूबर | अक्टूबर-दिसंबर |
जापानी व्हाइट (55-60 दिनों में तैयार) | नवंबर-दिसंबर | दिसम्बर-जनवरी |
पालम हृदय (40-45 दिनों में तैयार) | सितंबर-नवंबर | अक्टूबर-दिसंबर |
व्हाइट आइसिकिल, रैपिड रेड, व्हाइट टिप्ड व पूसा मृदुला (25-30 दिनों में तैयार) | अक्तूबर-दिसंबर | नवंबर- जनवरी |
अगेती मूली की एशियाई किस्में- जापानी व्हाइट, पूसा चेतकी, हिसार मूली-1, कल्याणपुर-1 | सितंबर | अक्तूबर |
बीज दर
बीज दर | बीज उपचार (बुवाई से पहले) | बुवाई का तरीका(मेड़ों पर) |
4-5 कि.ग्रा. प्रति एकड़ | 5- 10 मि.ली. तरल कॉन्सोर्टिया प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित करें | मेड़ों की दूरी- 30-45 सें.मी. |
बीज की गहराई- 1.5 सें. मी. | ||
छ्ंटाई के बाद पौधों की दूरी- 7.5 सें.मी |
मूली की खेती के लिए खाद और उर्वरक प्रबंधन
जैविक खाद (प्रति एकड़)
पोषक तत्व | मात्रा | समय |
गोबर की खाद (अच्छी तरह से सड़ी/गली हुई) | 4-5 टन | पूरी मात्रा जुताई के समय |
जैव उर्वरक (तरल कॉन्सोर्टिया) | 300-400 मिली. | 50-100 किग्रा. मिट्टी /बालू /कम्पोस्ट खाद में अच्छी तरह मिश्रण बनाकर बुवाई के समय या 24 घंटा पूर्व खेत में डालें. |
उर्वरक (प्रति एकड़)-
पोषक तत्व | मात्रा | समय | उर्वरकों का चुनाव – I | उर्वरकों का चुनाव – II |
नाइट्रोजन | 25-30 कि.ग्रा | -आधी मात्रा बुवाई के समय/खेत तैयार करते समय -शेष आधी मात्रा मिट्टी चढ़ाते समय | 55-65 किलो यूरीया | 45 किलो यूरीया |
फास्फोरस | 12-16 कि.ग्रा | पूरी मात्रा बुवाई के समय/खेत तैयार करते समय | 75 किलो सिंगल सुपर फास्फेट | 50 किलो इफको एन पी के (10-26-26) |
पोटैशियम | 12-16 कि.ग्रा | पूरी मात्रा बुवाई के समय/खेत तैयार करते समय | 20 किलो मयूरिएट ऑफ पोटाश |
मूली की फसल में सिंचाई | Irrigation in Radish Crop
- बुवाई के समय खेत नमी होनी चाहिए.
- पहली सिंचाई 3-4 पत्तियां आने पर करनी चाहिए
- सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें
- आधी मेड़ तक सिंचाई करें ताकि पूरी मेड़ भुरभुरी व नमी युक्त बनी रहे.
- मूली में सिंचाई मिट्टी की नमी के अनुसार करें
मूली की फसल में खरपतवार का प्रंबधन
खरपतवार नियत्रण के लिए बुआई के तुरंत बाद 1 से 2 दिन के अंदर 3.3 लीटर पेंडामेथलीन 600 से 800 लीटर पानी के साथ घोलकर बनाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत छिड़काव करें.
मूली की फसल में लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण
मूली की फसल (Radish Crop) में माहू/चेपा (एफीड), काली भुंडी और पत्ते की सुंडी, ब्लाईट/मुरझाना, सफेद रतुआ आदि रोगों का प्रकोप रहता है. जिसकी वजह से फसल ख़राब होने का दर हमेसा बना रहता है. अपने क्षेत्र के कृषि विशेषज्ञों की सलाह के औसर इन रोगों की रोकथाम करनी चाहिए.
मूली कटाई – radish harvesting
मूली की फसल (Radish Crop) तैयार होने के बाद उसको उखाड़ने से 2-3 दिनों पहले हल्की सिंचाई करें ताकि मूली उखाड़ने में कोई दिक्क्त न हो. मूली की फसल तैयार होने पर उसे उखाड़ने में देर न करें, यदि उखाड़ने में देर होती है तो इसकी गुणवत्ता ख़राब होने लगती है.
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