Matar ki Kheti (Peas Farming): सरसों की खेती (Peas Cultivation) सामान्यतः सर्दी में होने वाली फसल है. मटर की खेती (Pea Farming) से एक अच्छा मुनाफा तो मिलता ही है, साथ में यह खेत की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाता है. इसमें मौजूद राइजोबियम जीवाणु भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक होते है. यदि मटर की अगेती किस्मों की खेती की जाए तो अधिक पैदावार के साथ भूरपूर मुनाफा भी लिया जा सकता है. इसकी कच्ची फलियों का उपयोग सब्जी के रुप में उपयोग किया जाता है. यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. पकने के बाद इसकी सुखी फलियों से दाल बनाई जाती है.

मटर की खेती कैसे करें ? – Matar ki Kheti in Hindi
भारत में मटर की खेती (matar ki kheti) करीब 7.9 लाख हेक्टेयर भूमि की जाती है. इसका सालाना उत्पादन लगभग 8.3 लाख टन है यानी 1029 किग्रा./हेक्टेयर है. मटर की खेती करने वालों में उत्तर प्रदेश प्रमुख स्थान है. उत्तर प्रदेश में करीब 4.34 लाख हेक्टेयर भूमि पर मटर उगाई जाती है, जोकि कुल 4.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मटर उगाई जाती है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक , मध्य प्रदेश में 2.7 लाख हे., उड़ीसा में 0.48 लाख., बिहार में 0.28 लाख हे. क्षेत्र में मटर की खेती की जारी है. अगर किसान भाई मटर की अगेती खेती करना चाहते है तो इस आर्टिकल को जरूर पढें क्योकि इस लेख के जरिये आपको मटर फार्मिंग के बारे में सम्पूर्ण जानकरी देने जा रहे है.
मटर की खेती की पूरी जानकारी – Peas Farming in Hindi
मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
अक्टूबर-नवंबर का महीना मटर की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है. इसके बीज को अंकुरित होने के लिए 22 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है. बीज उगने के बाद फसल के अच्छे विकास के लिए 10 से 15 सेल्सियस के बीच का तापमान होना चाहिए. जिससे फलियों में दाने अच्छे पड़ेंगे.
मटर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मटर की खेती की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है लेकिन इसकी फसल के लिए रेतली दोमट और चिकनी मिट्टी ज्यादा उपयुक्त मानी गई है. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी एच 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए. फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए.
मटर की प्रसिद्ध वैरायटी/मटर की अगेती किस्म
1. आर्किल- यह देश में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली वैरायटी है. यह फ्रांस से आई विदेशी प्रजाति है. इस प्रजाति में दाने निकलने का प्रतिशत अधिक (40 प्रतिशत) है. बाजार में इसकी कच्ची फलियों को भी बेचा जा सख्त सकता है. इसकी पहली तुड़ाई बुबाई से करीब 60-65 दिन लेती है. हरी फली के उपज 8-10 टन प्रति हेक्टेयर है.
2. पीजी 3: यह छोटे कद वाली किस्म जोकि 35 दिनों में तैयार हो जाती है. इसके फूलों का रंग सफेद और दानो का रंग क्रीमी सफेद होता है. यह वेरायटी रोग प्रतिरोधी भी है. इसको सब्जी के लिए काफी अच्छा मन गया है.
3. मटर अगेता 6: इस वेरायटी को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार किया है. यह अगेती छोटे कद की किस्म होती है. इसके दाने सॉफ्ट होते. इसकी औसतन पैदावार 24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
4. पंजाब 88: पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के इस वैरायटी को विकसित किया है. इसकी फलियों का रंग गहरा हरा और इसकी फलिया मुड़ी हुई होती हैं. यह वेरायटी करीब 100 दिनों में ये पक कर तैयार हो जाती है. इसकी हरी फलियों की पैदावार 62 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है.
5. अगेती मटर – 7 (वी एल – 7) – इस वेरायटी को विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा ने विकसित किया है. इसकी औसतन उपज 10 टन / हेक्टेयर होती है,
मीठी फली: इसका स्वाद मीठा होने के कारण इसको मीठी फली नाम से जाना जाता है. यह वेरायटी करीब 90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इसकी औसतन पैदावार 47 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
इनके अल्वा मटर की अन्य प्रजातियां भी है जैसे-
मटर अगेता (ई-6), जवाहर मटर 3 (जे एम 3, अर्ली दिसम्बर), जवाहर मटर – 4 ( जे एम 4), हरभजन (ईसी 33866), पंत मटर – 2 (पी एम – 2), जवाहर पी – 4, पंत सब्जी मटर, पंत सब्जी मटर 5
इसके अतरिक्त जल्दी तैयार होने वाली अन्य अगेती किस्में
काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और काशी अगेती किस्में है जो 50 से 60 दिन में तैयार हो जाती हैं।
मटर की खेती के लिए जमीन तैयार करने की विधि
खरीफ सीजन की फसल कटने के बाद खेत की 1-2 बार हैरो से जुताई कर खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दे. फिर खेत की अच्छे से जुताई कर भूमि को समतल बनाकर पलेवा कर दे ताकि बुबाई के समय नमी की कमी न हो बीज आसानी से अंकुरित हो सके.
बुवाई करने का समय और तरीका
मटर की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए अक्टूबर से मिड नवंबर के बीच बुबाई कर देनी चाहिए. याद आप इससे आगे बुबाई करते है तो इसका असर फसल के उत्पादन पर पड़ सकता है. बीज को मिट्टी में 2 से 3 सै.मी. गहराई में बोएं और बीज से बीज की दूरी 30 सैं.मी. x 50 सैं.मी. रखें.
बीज की मात्रा
मटर की खेती करने के लिए 35 से 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है. बुबाई करने से पहले बीज को केप्टान या थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज उपचारित कर लें. जिससे फसल के उत्पादन में करीब 8 से 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है.
खाद की मात्रा
मटर की खेती सामान्यत: 20 किग्रा, नाइट्रोजन (यूरिया), 25 किलो फासफोरस प्रति एकड़ बुबाई के समय देना उचित है. पोटेशियम की कमी वाले क्षेत्रों में 20 कि.ग्रा. पोटाश (म्यूरेट ऑफ पोटाश के माध्यम से) दिया जा सकता है. किसान भाई मिट्टी की अवश्य जाँच कराएं जिससे पोषक तत्वों की पूर्ति करने में आसानी हो सके.
खरपतवार नियंत्रण
किसी भी फसल के लिए खरपतवार नियंत्रण बहुत जरुरी है. मटर के पौधों पर 2-3 पत्ते आने के बाद पहली नराई/गुड़ाई कर दें. दूसरी नराई/गुड़ाई फूल निकलने से पहले कर देनी चाइये.
सिंचाई कैसे करें
मटर की बुवाई करने से पहले सिंचाई करना बहुत जरुरी होता है. यदि आप धान के खेत में मटर की बुबाई कर रहे तो उसमें पहले से ही पर्याप्त मात्रा में नमी रहती है तो बिना सिचाई के बुबाई की जा सकती है. मटर की फसल को अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है. प्रारंभ में मिट्टी की नमी और शीत ऋतु की वर्षा के आधार पर 1-2 सिंचाइयों की जरुरत होती है. पहली सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी सिंचाई फलियां बनने के समय की जाती है. किसान भाई इस बात का भी ध्यान रखे की खेत कि हल्की सिंचाई करें और फसल में पानी ठहरा न रहे.
फसल की कटाई का समय
गहरा हरा रंग होने पर मटर की फलियों की तुड़ाई करनी चाहिए. 7 से 10 दिनों के अंतराल पर 4 से 5 तुड़ाइयां की जा सकती हैं. इसके अतरिक्त फसल का उत्पादन मिट्टी की उपजाऊ शक्ति औऱ खेत में इसके प्रबंधन पर निर्भर करती है.
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