कटहल की खेती / Cultivation / Kathal ki Kheti : कटहल खेती / Jackfruit Farming के बारे में कहावत है कि “कटहल की खेती कभी गरीब नहीं होने देती”. भारत में इसकी खेत पूर्वी एवं पश्चिमी घाट के मैदानी क्षेत्र, उत्तर-पूर्व के पर्वतीय क्षेत्र, संथाल परगना एवं छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बंगाल के मैदानी क्षेत्र में मुख्य रूप से की जाती है. कटहल एक बहुशाखीय सदाबहार पौधा है जिसकी उचाई तक़रीबन 10-15 मी. तक हो जाती है. कटहल की कुछ वेरायटी बाजार में आ गई है जो सालभर पैदावार देती है जिससे किसानो सालभर आमदनी होती है. इसलिए कटहल की खेती किसानो के लिए नकदी फसल रूप में लाभकारी हो सकती है. तो चलिए जानते कटहल की खेती कब और कैसे करें?

कटहल की खेती – Cultivate Jackfruit
कटहल श्रीलंका और बांग्लादेश का राष्ट्रीय फल है, जबकि केरल और तमिलनाडु में इसे राज्य फल का दर्जा दिया गया है. कटहल स्वाद एव पौष्टिकता की दृष्टि अत्यंत ही महत्वपूर्ण मन गया है. इसके अलावा कटहल को मीट का विकल्प भी मना जाता है. कटहल के फलों में शर्करा, पेक्टिन, खनिज पदार्थ एवं विटामिन ‘ए’ का अच्छा स्रोत होता है. कटहल अनेक बीमारियों में लाभदायक होता है. इसके अलावा आप Sahjan ki kheti, Arbi ki Kheti, Curry Patta ki Kheti , Tarbooj ki Kheti , kharbuja ki Kheti के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें.
कटहल की खेती की पूरी जानकारी – Jackfruit Farming in India
अनुकूल जलवायु
कटहल की खेती (Jackfruit Farming) शुष्क और नम दोनों जलवायु की जा सकती है. गर्मी और वर्षा ऋतू में कटहल के पौधों का विकास अच्छा होता है. 10 डिग्री से नीचे का तापमान कटहल की खेती के लिए हानिकारक होता है.
भूमि का चयन
कटहल की खेती (Jackfruit Cultivation) के लिए अच्छी जल निकासी, कार्बनिक पदार्थ से भरपूर, और 6 से 7 पी.एच.मान वाली दोमट और बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है.
खेत की तैयारी
कटहल की खेती (kathal ki kheti) के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने हाल कर खेत को खुला छोड़ दें ताकि खेत में मौदूज खरपतवार और कीट नष्ट हो जायेंगे. कटहल के पौधे लगाने से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर जमीन को समतल करें. कटहल के पौधे लगाने के लिए खेत में 10 से 12 मीटर की दूरी पर एक फुट चौड़ा और डेढ़ फुट गहराई के गड्ढे खोद कर कुछ दिन के लिए छोड़ दें.
कटहल की प्रसिद्ध किस्में
खजवा, स्वर्ण मनोहर, एन.जे.-1, एन.जे.-2, एन.जे.-15, स्वर्ण पूर्ति (सब्जी के लिए) ये है, किस्म भारत मे मुख्यतः सब्जी के लिए उपयोग होती है.
कटहल के पौधों की रोपाई का समय
भारत में कटहल के पौधों की रोपाई जुलाई से सितम्बर में की जानी चाहिए. लेकिन बारिश का मौसम कटहल के पौधों लिए उपयुक्त माना जाता है.
कटहल के पौधों को तैयार करने की विधि (Jackfruit Plants Preparing Method)
कटहल के पौधे सीधे बीज से, गूटी बाधना विधि, और ग्राफ्टिंग विधि द्वारा तैयार किये जाते है.
कटहल के बीज या पौध
बीज से तैयार कटहल के पौधे 6-7 वर्ष में पैदावार मिलती है जबकि ग्राफ्टिंग विधि से तैयार पौधे 4 साल उत्पादन देने लगते है. इसलिए आप किसी सरकारी या मन्यता प्राप्त नर्सरी से कटहल की उन्नत वेरायटी के की पौध ले सकते हैं.
कटहल के पौधे किस तरह लगायें
कटहल के पौधे लगाने के लिए 20 से 25 किलो गोबर की खाद, कंपोस्ट, 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500 म्युरियेट आफ पोटाश, 1 किलोग्राम नीम की खल्ली तथा 10 ग्राम थाइमेट को मिट्टी के साथ मिश्रण बना लें. इस मिश्रण को गद्दों में भर दें. एक फुट चौड़ा और डेढ़ फुट गहरा गड्ढा खोद कर उस में कटहल का पौधा लगा देना चाहिए.
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
कटहल के पौधों से अच्छा उत्पादन लेने के लिए खाद एवं उर्वरक की पर्याप्त मात्रा देने चाहिए. प्रत्येक पौधे को 15-20 कि.ग्रा, गोबर की खाद, 100 ग्रा. यूरिया, 200 ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पौधे के दर से हर साल देना चाहिए. पौधे बड़े होने पर उनकी आवश्यकतानुसार खाद एवं रासायनिक उर्वरक की मात्रा बड़ा देनी चाहिए.
कटहल के पौंधो की सिंचाई (Jackfruit Plants Irrigation)
कटहल के पौधों को आधी सिचाई की जरुरत नहीं पड़ती, लेकिन पौधों को लगाने के तुरंत बाद सिचाई कर देने चाहिए. गर्मियों के मौसम में पौधों की सिचाई 15 से 20 दिन के अंतराल कर देनी चाहिए. बारिश के मौसम में अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है. पौधों को आवश्यकतनुसार पानी देते रहना चाहिए.
कटहल के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Jackfruit Plants Weed Control)
कटहल के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए पुरे खेत में निराई/गुड़ाई करने की आवश्यकता नहीं है. कटहल के पौधों के आस-पास खरपतवार न होने दे.
कटहल के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Jackfruit Plants Diseases and their Prevention)
फल सड़न रोग :-
राइजोपस आर्टोकार्पी की वजह से कटहल के फलो को उनके डंठल के पास से सड़ाकर ख़राब कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए ब्लू कॉपर की उचित मात्रा का घोल बनाकर पौधों पर छिड़के.
बग रोग:-
इस प्रकार का रोग ज़्यदातर पौधों की पत्तियों और उनकी नई शाखाओ पर देखने को मिलेग. इस रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियांपीली पड़ने लगती है. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग से छुटकारा पाने के लिए मैलाथियान की 0.5% की मात्रा का छिड़काव पौधों करें.
गुलाबी धब्बा:-
यह रोग पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देता है. जिससे पौषों की वृद्धि रूक जाती है. इससे वचाव के लिए पौधों पर कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर का घोल बना कर उचित मात्रा में छिड़काव करें.
कटहल की पैदावार (Jackfruit Yield)
कटहल के पौधे लगाने के बाद करीब तीन से चार साल बाद उत्पादन देने को तैयार होता है. कुछ वेरायटी ऐसी होती है पैदावार देने में अधिक समय लगाती है. एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 150 पौधों को लगाया जा सकता है. जिससे प्रति वर्ष एक पौधे से लगभग 500 से 1000 किलोग्राम की पैदावार प्राप्त हो जाती है .
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