करेला की खेती / Bitter Gourd Cultivation / Karela ki Kheti : करेले की खेती (Bitter Gourd Farming) सब्जी के रूप में की जाती है. करेले की खेती (Karela ki kheti) भारत के लगभग सभी राज्यों के किसान करते है. भारतीय किसान करेले की फसल का उत्पादन साल में दो बार कर लेते है. करेले की खेती नम और गर्म दोनों जलवायु में की जाती है. औषधीय गुण होने के कारण इस बेल वाली फसल की मांग भारतीय बाजार अधिक होने की वजह से आसानी से बिक जाती है. अगर करेले की खेती वैज्ञानिक तरीके की जाये तो एक अच्छी इनकम (income) देती है. अगर आप करेले की खेती कर अच्छा मुनाफा कामना चाहते है, तो आप इस लेख को अंत तक ज़रूर पढें. जिससे आपको करेले की खेती करने में काफी मदद मिलेगी. करेला की खेती करने के साथ आप Karela ke Fayde की जानकारी प्राप्त कर सकते है.

करेला की खेती की पूरी जानकारी – Bitter Gourd Farming in Hindi
करेला अपने औषधीय गुणों के कारण सबसे लोकप्रिय सब्जियों में से एक है. इसके फलों में विटामिन ओर खनिज पदार्थ प्रचुर होते है. दुनिया के अन्य हिस्सों करेले को कड़वे तरबूज के रूप में भी जाना जाता है. भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. करेले की खेती कैसे की जाती है आज हम इसी पर बात करते है. करेला की खेती के अलावा आप बैगन की खेती , Mirch ki kheti, Dragon Fruit ki Kheti, Strawberry ki kheti के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें.
करेला की खेती कैसे करें ? – Karela ki Kheti in Hindi
करेले की खेती के लिए जलवायु (Climate for Bitter gourd cultivation)
करेले की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए अच्छी जलवायु होना आवश्यक है. करेला की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु अत्याधिक उपयुक्त मानी जाती है. करेला की फसल के लिए न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेट और अधिकतम तापमान 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच अच्छा माना जाता है.
करेले खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Suitable land for bitter gourd farming)
करेला की फसल के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की जरूरत नहीं है. इसको किसी भी उपजाऊ मिट्टी में बड़े ही आसान तरीके से उगाया जाता सकता है. लेकिन 6.5-7.5 पीएच के साथ कार्बनिक पदार्थों से भरपूर जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी को इस फसल के लिए उपयुक्त माना जाता है. इस प्रकार की भूमि से करेले की खेती से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. जिससे किसान भाईयों को इसकी खेती करने से उचित लाभ मिल सकता है.
भारत में करेले की प्रमुख किस्में (Major varieties of bitter gourd in India)
- ग्रीन लांग (Green Long)
- फैजाबाद स्माल (Faizabad Small)
- जोनपुरी (Jonpuri)
- झलारी (Jhalari)
- सुपर कटाई (Super Harvesting)
- सफ़ेद लांग (White Long)
- ऑल सीजन(All Season)
- हिरकारी (Hikari)
- भाग्य सुरूचि (Destiny Souchi)
- मेघा – एफ 1 (Megha – F1)
- वरून – 1 पूनम (Varun – 1 Poonam)
- तीजारावी (Tejaravi)
- अमन नं.- 24 (Aman No.- 24)
- नन्हा क्र.– 13 (Little No.– 13)
- पूसा संकर 1 (Pusa Sankar 1)
- पी.वी.आई.जी. 1 (PVIG 1)
- आर.एच.बी.बी.जी. 4 (R.H.B.G. 4)
- के.बी.जी.16 (KBG16)
- फैजाबादी बारह मासी (Faizabadi Barah Masi)
- अर्का हरित (Arca Green)
- पूसा 2 मौसमी (Pusa 2 Seasonal)
- कोयम्बूर लौंग (Coimbatore cloves)
- सी 16 (C16)
- पूसा विशेष (Pusa Special)
- कल्याण पुर बारह मासी (Kalyan Pur Barah Masi)
- हिसार सेलेक्शन (Hisar Selection)
खेत की तैयारी
सबसे पहले खेत की अच्छे से क्रॉसवाइज जुताई कर मिट्टी को समतल और भुरभुरा बना लेना चाहिए. खेत में जाल निकासी की उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए, जिसे खेत में पानी नहीं भर पायेगा.
बीज की मात्रा और बीजोपचार
एक एकड़ में बुवाई के लिए 500 ग्राम करेले के बीज पर्याप्त होता है. बुवाई से पहले इस बीज को बाविस्टीन (2 ग्रा प्रति किलो बीज दर से) के घोल में 18-24 घंटे तक भिगोना चाहिए. इसके बाद इस बीज को निकालकर छाया में सुखा लेना चाहिए.
बुवाई का समय
किसान को करेले के बीज की बुवाई का समय मालूम होना चाहिए. आज हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी देंगे. गर्मी के मौसम की फसल लेने के लिए किसान भाई जनवरी से मार्च तक इसकी बुवाई कर देनी चाहिए. मैदानी इलाकों में बारिश के मौसम की फसल लेने के लिए जून से जुलाई के बीच बुवाई हो जानी चाहिए और पहाड़ियों में इसके बीज की बुबाई मार्च से जून तक की जाती है.
करेले की बुवाई की विधि
करेले के बीज की बुबाई डिब्बिंग विधि से 120×90 के फासले करनी चाहिए. आमतौर पर 3-4 बीजों को 2.5-3.0 सेमी गहराई पर गड्ढे में बोया जाता है. बीज को बुबाई से पहली बीजों को रात भर पानी में भिगो लेना चाहिए जिससे बीज अच्छे से अंकुरित हो जायेगा. आपको बता दे कि बीजों को 25-50 पीपीएम और 25 बोरान के घोल में 24 घंटे तक भिगोकर रखने से बीजों का अंकुरण बढ़ जाता है. फ्लैटबेड लेआउट में बीजों को 1 मीटर x 1 मीटर की दूरी पर डाला जाता है.
करेले की खेती में खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer in Bitter gourd Farming)
करेले की बीज की बुबाई से पहले खेत को तैयार करते समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल भी करना चाहिए. इसके अलावा 50 किलोग्राम डीएपी, 50 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 किलोग्राम यूरिया, 50 किलोग्राम पोटाश, 10 किलोग्राम फ्यूराडान, 5 किलोग्राम जायज, 500 ग्राम कॉपर ऑक्सी क्लेइड के हिसाब से मिश्रण तैयार खेत में डालना चाहिए. बुवाई के 25 से 30 दिन बाद फसल में निराई-गुड़ाई करके पौधे पर मिट्टी चढ़ाये. फूल आने के समय पर नाइट्रोजन फसल में दिया जाता है.
करेले की फसल में सिंचाई (Irrigation in bitter gourd crop)
खेत में करेले की रोपाई नर्सरी द्वारा हुई है तो रोपाई के तुरंत बाद पौधों की सिचाई कर देनी चाहिए. गर्मियों के मौसम में 6 से 7 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करनी चाहिए और बारिश की सीजन में आवश्यकतानुसार सिचाई करें.करेले की फसल को कुल 8 से 9 सिंचाई की जरुरत होती है.
निराई-गुड़ाई
फसल को खरपतवारों से मुक्ति दिलाने के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. सामान्यत: पहली निराई बुवाई के 30 दिन बाद करनी चाहिए. बाद की निराई मासिक अंतराल पर करते रहे.
करेले की फसल की सुरक्षा कैसे करें?
करेला की फसलमें विभिन्न प्रकार के रोग, कीट जैसे – रेड बीटल, माहू रोग और सुंडी आदि लगने का डर बना रहता है. इन रोग, कीट और वायरसों के प्रकोप से बचाने के लिए कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेकर कीटनाशक या रासायनिक खाद का उपयोग फसल का उपचार करते रहना चाहिए.
तुड़ाई
करेले के बीज बोने से लेकर फसल आने तक करीब 55-60 दिन लगते हैं. करेले के फलों को की तुड़ाई 2-3 दिनों के अंतराल पर कर लेने चाहिए नहीं फल पक कर पिले पड़ने लगेंगे. करेले के फलों की तुड़ाई आमतौर पर तब की जाती है जब फल कोमल और हरे होते हैं जिससे परिवहन के दौरान फल पीले या पीले नारंगी न हो जाएं. कटाई सुबह के समय करनी चाहिए और फलों को कटाई के बाद छाया में रखना चाहिए.
उपज
करेले के फसल की उपज किस्म, मौसम और कई अन्य कारकों निर्भर होती है लेकिन फसल की औसतन उपज 8 से 10 टन / हेक्टेयर तक हो जाती है.
करेले की खेती में लागत, उपज और लाभ / करेले की खेती से लाभ
एक एकड़ में करेले की खेती करते है तो करीब 20-25 हजार रुपए की लागत तक आती है. जबकि इससे प्रति एकड़ 50 से 60 क्विंटल की उपज प्राप्त हो सकती है. इसका बाजार में भाव करीब 2 लाख रुपए तक प्राप्त हो जाता है. इस हिसाब से देखें तो करेले की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
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