Kalonji ki kheti (Kalonji Cultivation): कलौंजी (मंगरैल) की खेती (Kalonji Farming in Hindi) को व्यापारिक तौर देखा जाये तो यह अधिक मुनफा देने वाली फसल मांगी गई है क्योकि इसकी डिमांड भारतीय बाजारों में सालभर बनी रहती है. कलौंजी एक औषधीय फसल है जिसका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की परंपरागत दवाओं को बनाने में किया जाता है. कलौंजी की खेती भारत के हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, आसाम आदि राज्यों में की जाती है. अगर आप कलौंजी की खेती करने का मन बना चुके है तो हमारे इस लेख को जरूर पड़ें ताकि कलौंजी खेती कैसे करे? इससे सम्बंधित पूरी जानकारी आप जान सके. जाने Kalonji ke Fayde
कलौंजी की खेती (Kalonji ki kheti) कब और कैसे करे[/caption
कलौंजी की खेती – Kalonji ki kheti in Hindi
अगर कलौंजी की खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो इसकी फसल से अच्छी पैदावार लेकर बढ़िया कमाई की जा सकती है. इसकी खेती करने से पहले आपको उपयुक्त मिट्टी, जलवायु तथा तापमान आदि के इसके बारे में सभी जानकारी लेनी पड़ेगी बिना जानकारी के नुकसान भी सकता है.
कलौंजी की खेती की पूरी जानकारी (Kalonji Farming in Hindi)
कलौंजी की खेती के सम्बंधित सही जानकारी आपको इस लेख के जरिये पहुंचने के कोशिश कर रहे है. आवश्यक जलवायु, भूमि, बीज की मात्रा, कलौंजी की बुवाई का तरीका आदि की जानकारी का विस्तार से नीचे विवरण दिया है. तो चलिए जानते है कलौंजी की उन्नत खेती कैसे करे.
जलवायु (Climate Requirement for Kalonji Cultivation)
रबी के मौसम में की जाने वाली कलौंजी की खेती के लिए ठंडी और बीज अंकुरण के समय शुष्क और गर्म जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. बीज अंकुरण के दौरान 18 डिग्री के आस-पास का तापमान तथा फसल पकने के समय 30 डिग्री तापमान होना आवश्यक है
उपयुक्त मिट्टी (Soil Requirement for Kalonji Cultivation)
कलौंजी या मंगरैला की खेती के लिए के लिए उचित जल निकासी वाली जीवाश्म युक्त बलुई दोमट सबसे बढ़िया मानी जाती है. फसल के अच्छे विकास किए लिए मिटटी का पी. एच. मान 6-7 के बीच होना आवश्यक है.
कलौंजी की उन्नत किस्में (Varieties of Kalonji )
कलौंजी या मंगरैला की बाजार में विभ्भिन किस्में मौजूद है जिनका विवरण निम्नलिखित है.
एन.आर.सी.एस.एस.एन.-1- इस किस्म को तैयार होने में करीब 135 दिन लग जाते है. यह किस्म जड़ सड़न रोग के प्रति सहिष्णु है. इससे औसतन पैदावार 12 क्विंटल/हैक्टर तक हो जाती है.
आजाद कलौंजी:- इस वैरायटी को तैयार होने में लगभग 130 से 135 लग जाते है. इसकी औसतन उपज 8-10 क्विंटल/ हैक्टर तक है
अजमेर कलौंजी:- इस वैरायटी को पकने में करीब 135 दिन लग जाते है. इसकी औसतन उपज 8 क्विंटल/हैक्टर है.
कालाजीराः इस वैरायटी की फसल करीब 135 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल/ हैक्टर है
पंत कृष्णा:- इस वैरायटी को कटाई के लिए तैयार होने में 130 से 140 दिन लग जाते है. इससे प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 से 10 क्विंटल के आस-पास हो जाता है.
एन.एस.-44:- इस किस्म को पकने में 140 से 150 दिन लग जाते है. इसका औसतन पैदावार 4.5-6.5 क्विंटल/हैक्टर है.
एन.एस.-32:- इस किस्म को तैयार होने में 140 से 150 दिन लग जाते है. इसकी औसतन पैदावार 4.5-5.5 क्विंटल/हैक्टर है
खेत की तैयारी (Land Preparation for Kalonji Cultivation)
कलौंजी (मंगरैला) की खेती ((Nigella Sativa Farming) के लिए पहली जुताई पलाऊ से करें ताकि पुरानी फसल के अवशेष और खरपतवार नष्ट हो जाए. खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाने के लिए उचित मात्रा में सड़ी गोबर की खाद डालकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के बाद खेती की ऊपरी परत सुख जाने पर रोटावेटर की सहायता खेत की अच्छे जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी और समतल कर लें.
बुवाई का समय (Kalonji Sowing Time)
कलौंजी की बुवाई मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक कर सकते सकते है
बीज की मात्रा
कलौंजी की एक हेक्टेयर खेती करने के लिए करीब 7-8 किलोग्राम बीज आवश्यकता होती है.
बुवाई का तरीका (Kalonji Sowing Method)
कलौंजी को छिटकव विधि या फिर मशीन द्वारा बुवाई कर सकते है. कलौंजी की कतार विधि से बुवाई करते समय बीज से बीज की 30 सें.मी. की दूरी और गहराई 2 सें.मी. से अधिक न हो अन्यथा बीज जमाव पर इसका असर पड़ सकता है.
बीजोपचार
अगर बीज घर का है तो बुआई से पूर्व कैप्टॉन, थीरम व बाविस्टीन से 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से उपचारित करना आवश्यक होता है.
खाद एवं रासायनिक उर्वरक (Manures and Fertilizers in Kalonji Cultivation)
कलौंजी की फसल को अन्य फसलों की तरह ही उर्वरक की आवश्यकता होती है. कलौंजी की फसल के लिए खेत तैयार करते समय 4-5 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें. इसके अलावा बुवाई से पहले 20-25 किलो नाइट्रोजन, 8-10 किलो फॉस्फोरस और 6-8 किलो पोटाश प्रति एकड़ की दर डालें.
सिंचाई (Irrigation in Kalonji Cultivation)
फसल की आवश्यकता अनुसार सिंचाई कर देना चाहिए
खरपतवार नियंत्रण (Weed Management in Kalonji Cultivation)
कलौंजी की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली नीदाई-गुड़ाई बुवाई के करीब 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए. खरपतवार की रोकथाम के लिए समय समय पर आवश्यकतानुसार नराई/गुड़ाई करें.
रोग एवं रोकथाम (Pests and Diseases in Kalonji Cultivation)
कटवा इल्ली:- यह रोग अंकुरण के तुरंत बाद शुरू हो जाता है. इस रोक की रोकथाम के लिए उचित मात्रा क्लोरोपाइरीफास का छिड़काव करें.
जड़ गलन:- यह तो जल भराव के कारण फसल में आता है. इसकी रोकथाम के लिए खेत में पानी न भरने दें.
फसल कटाई (Harvest Kalonji Crop)
कलौंजी की कटाई बुवाई के करीब 130-150 दिनों बाद शुरू हो जाती है. कटाई के लिए तैयार फसल के पौधों को जाड से उखड लिया जाता है. पौधों को उखाड़कर 7-8 दिनों तक धुप में सूखने के बाद कलौंजी के दानो को निकाल लिया जाता है.
पैदावार और लाभ (Kalonji yield and profit)
कलौंजी की फसल से पैदावार भूमि. जलवायु, किस्म और देखभाल पर निर्भर करती है. सामान्यतः कलौंजी की फसल से औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हो जाती है. जिसका भाव करीब 20 हज़ार प्रति क्विंटल के आस-पास मिल जाता है.
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