कद्दू की खेती / Pumpkin Cultivation / Kaddu ki Kheti : कद्दू की खेती / Pumpkin Farming असाम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर किया जाता है. यदि कद्दू की खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाये तो यह किसानों के लिए अच्छी कमाई का साधन बन सकता है. भारत कद्दू (pumpkin) के उत्पादन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. कद्दू को काशीफल, सीताफल, कोला या कोयला कई जगह इसे पैठे की सब्जी से भी जाना जाता है.चलिए जानते है कद्दू की खेती कैसे की जाती है. कद्दू की खेती करने के साथ आप Kaddu ke beej ke Fayde की जानकारी प्राप्त कर सकते है.

कद्दू की खेती कैसे करें ? – Kaddu ki Kheti in Hindi
सब्जियों कद्दू की सब्जी का अपना एक विशेष स्थान है. यह स्वस्थ के लिए काफी लाभदयक होती है. इसमें विटामिन ए, जिंक, कैरोटीन और पोटाशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है. यह नज़र तेज करने और रक्तचाप को कम करने में सहायक के साथ साथ एन्टीऑक्सीडेंट विशेषताएं भी रखता है. कद्दू के बीजों का सेवन करने से डिप्रेशन दूर और इम्यून सिस्टम बढ़ाने में भी मददगार साबित होता है. इसका इस्तेमाल मिठाई बनाने, सॉस बनाने, सांभर, Pumpkin Juice, च्यवनप्राश आदि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा आप Aloo ki kheti, Shimla Mirch ki Kheti , Mooli ki Kheti , Tamatar ki Kheti, Bhindi Ki Kheti के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें.
कद्दू की खेती की पूरी जानकारी – Pumpkin Farming in Hindi
कद्दू की खेती के लिए जरुरी जलवायु (Suitable Climate for Pumpkin Cultivation)रे
शीतोषण और समशीतोष्ण जलवायु कद्दू की फसल के लिए सर्वोत्तम मानी गई है. कद्दू की खेती (Pumpkin Farming) के लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उचित मना गया है. ठण्ड के मौसम में गिरने वाला पाला इसकी फसल के लिए हानि पहुँचता है. जबकि गर्मियों का मौसम कद्दू की फसल के लिए अच्छा माना जाता है.
कद्दू की खेती के लिए भूमि का चयन (land for pumpkin farming)रे
कद्दू की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी गई है. इसकी खेती के लिए 5.5 से 6.8 पी एच वाली भूमि की आवश्यकता होती है.
कद्दू की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for pumpkin
cultivation)रे
- बुवाई से करीब 15-20 दिन पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से 1 बार जुताई कर खेत को खुला छोड़ दें.
- इसके बाद 10 से 15 टन गोबर की खाद और 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा प्रति एकड़ की खेत में डालें.
- इसके बाद खेत की 1-2 गहरी जुताई कर मिट्टी को समतल कर पलेवा कर दें.
- पलेवा के 7 से 8 दिन बाद 1 बार गहरी जुताई करें.
- इसके बाद कल्टीवेटर से 2 बार आडी- तिरछी गहरी जुताई करके भूमि को पाटा लगाकर खेत समतल कर लें.
- अब खेत कद्दू की बुवाई के लिए तैयार है.
कद्दू की उन्नत वैरायटी (Improved variety of Pumpkin)
कद्दू (Pumpkin) की ऐसी बहुत सारी वैरायटी है जोकि 60 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है. जिनका फायदा लेकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते है. कद्दू (Pumpkin) की कुछ प्रजातियों के बारे में हम बताने जा रहे है.
पूसा विशवास, पूसा विकास, कल्यानपुर पम्पकिन-1, नरेन्द्र अमृत, अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, अम्बली, सीएस 14, सीओ 1 और 2, पूसा हाईब्रिड 1 और कासी हरित कददू की किस्मे हैं.
कद्दू की विदेशी किस्मों में भारत में पैटीपान, ग्रीन हब्बर्ड, गोल्डन हब्बर्ड, गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक नामक किस्मे छोटे स्तर पर उगाई जाती हैं.
कद्दू का बोने का समय (Pumpkin Planting Time)
- फ़रवरी से मार्च और जून से जुलाई का समय उचित माना जाता है.
- पहाड़ी/पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है.
- नदियों के किनारे इसकी बुवाई दिसंबर में भी कर सकते हैं.
कद्दू के बीज की मात्रा (Pumpkin Seed Quantity)
कद्दू की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 700 से 800 ग्राम बीज की जरुरत होती है.
बीज का उपचार
कद्दू के बीज को बुबाई से पहले उपचारित करना चाहिए. कद्दू के बीज को बुबाई से पहले 24 घंटे तक पानी में भगोये. बिजाई से ठीक पहले कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम + थिरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें.
कद्दू की बुवाई का तरीका
कद्दू की बुवाई के समय बीज से बीज की दूरी 60 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 150 से 180 सेमी रखनी चाहिए और बीज को 1 इंच की गहराई बोयें
कद्दू की फसल के लिए उर्वरक व खाद प्रबंधन
- बुवाई से 10-15 पहले प्रति एकड़ खेत में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद और 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा डालें.
- बीज को बोन के समय प्रति एकड़ खेत में 50 किलो डीएपी , 50 किलो पोटाश , 25 किलो यूरिया , 10 किलो कार्बोफुरान का खेत में डाले.
- पौधों के अच्छे विकास के लिए बुनाई के लगभग 15-20 दिन बाद 1 किलो एनपीके 19:19:19 और 250 मिली इफको सागरिका को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें.
- बुवाई के 30 से 35 दिन बाद प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में 25 किलो यूरिया , 5 किलो जायम का उपयोग करें
- बुवाई के 50 से 55 दिनों के बाद प्रति एकड़ खेत में 1 किलो एन.पी.के. 13:00:45 और 400-500 ग्राम बोरोन B – 20 को 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें.
- Note- रासायनिकों का इस्तेमाल अपने कृषि विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर ही करें.
कद्दू की फसल में खरपतवार नियंत्रण (weed control in pumpkin crop)
कद्दू की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए 2-3 बार निराई/गुड़ाई करनी चाहिए फिर निराई आवश्यकता अनुसार करें.
कद्दू की फसल में सिंचाई (Pumpkin crop irrigation)
शुरूआती दिनों में पौधों के अच्छे विकास के लिए गर्मियों के मौसम फसल की 5-6 दिन के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए. जबकि बारिश के मौसम आवश्यकतानुसार सिचाई करें. फूल / फलने आने के समय सिचाई का विशेष ध्यान रखे.
कद्दू की फसल में लगने वाले रोग तथा उनकी रोकथाम
लालड़ी रोग , फल मक्खी रोग , सफ़ेद सुंडी रोग, मोज़ैक रोग , एन्थ्रेक्नोज रोग , फल सड़न रोग के प्रकोप से बचाने के लिए रासायनिकों का इस्तेमाल करें. कद्दू के क्षतिग्रस्त फलों को इकट्ठा कर उन्हें नष्ट कर दें.
कद्दू के फलों की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Pumpkin Fruit Harvest, Yield and Benefits)
कद्दू की बुवाई के 100 से 110 दिन के अंतराल फसल तैयार हो जाती है. जब कद्दू के फल ऊपर से पीले सफ़ेद रंग के होने लगे तो इनको तोड़ लेना चाहिए. हरे फल को 70 से 80 दिन के बाद तोड़ सकते है. कद्दू की 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन लिया जा सकता है. इसकी फसल से लगभग 4 से 6 लाख की कमाई की जा सकती है.
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