बैगन की खेती / Brinjal Cultivation / Baigan Ki Kheti : बैगन की खेती (Brinjal Farming) भारत के प्रदेश पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है. बैगन की खेती (Baigan Farming) भारत के अलावा एशियाई देशों में भी की जाती है. बैगन की खेती (Baigan Cultivation) प्राचीन काल से भारत में होती चली आ रही है. बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है. इसके सख्त होने के कारण इसे शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं.

बैगन की खेती की पूरी जानकारी – Brinjal Farming in Hindi
जलवायु
बैगन की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए इसे गर्म मौसम में लगाया जाता है. ठंड के मौसम में कम तापमान होने के कारण फलों की विकृति का कारण बनता है. बैगन की नर्सरी डालते समय 25 डिग्री सेल्सिअस तापमान होना चाहिए जिससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा अच्छे उत्पादन के लिए 15 से 25 डिग्री तापमान होना चाहिए. अगर तापमान 15 डिग्री से कम या 25 डिग्री से ज्यादा है तो पौधों पर फूल बनना बंद हो जाता है. अगर इस अवस्था में भी फूल आते है तो वे गिर जाते है. जब तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से कम हो तो ऐसे समय में पौधों की रोपाई नहीं करनी चाहिए, लम्बे फल वाली किस्मों की अपेक्षा गोल फल वाली किस्मे पाले के लिए सहनशील होती है तथा अधिक पाले के कारण पौधे मर जाते है या झाड़ीनुमा हो जाते है.
भूमि का चयन
बैंगन का पौधा कठोर होने के कारण विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. बैगन की खेती से अच्छा उत्पादन लेने के के लिए 5 से 7 पी एच वाली उपजाऊ रेतीली दोमट मिट्टी, ढीली व भुरभुरी दोमट मिट्टी या कार्बनिक पदार्थों से धनी चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. अगेती फसल के लिए रेतीली दोमट भूमि तथा अधिक पैदावार के लिए मटियार दोमट भूमि अच्छी मानी गई है. जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. बैंगन की कुछ किस्में प्रतिकूल मिट्टी की स्थिति में अनुकूल होती हैं. इसलिए क्षेत्र व मिट्टी के अनुसार बैगन की किस्म का चयन करना फसल की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है.
खेत की तैयारी
बैगन की फसल के लिए खेत की तैयारी अच्छे से करना चाहिए. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. उसके बाद 3 से 4 बार हैरो या देशी हल चलाकर पाटा लगाये भूमि के प्रथम जुताई से पूर्व गोबर की खाद डालनी चाहिए. अगर गोबर की खाद उपलब्ध नहीं है तो हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए. आखरी जुताई 5% aaldrin 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालकर करनी चाहिए. ऐसा करने से यह पौधों को दीमक और अन्य भूमिगत कीड़ो से होने वाले नुकसान से बचाएगा. पौध की रोपाई करने से पूर्व सिचाई सुबिधा के अनुसार भूमि को क्यारियों तथा सिंचाई नालियों में विभाजित कर लेना चाहिए जिससे सिंचाई में कोई परेशानी नहीं होगी.
बैगन की उन्नत किस्में – Improved Varieties of Brinjal
किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली वैरायटी का चयन करना चाहिए. किसानो को किस्मों का चयन बाजार की मांग व लोकप्रियता के आधार पर करना चहिए. हम आपको बैगन की कुछ प्रचलित प्रजातियों के बारें में बता रहे है.
लम्बे फल- पूसा परपल लोंग, पूसा परपल क्लसटर, पूसा क्रान्ति, पन्त सम्राट, आजाद क्रांति, एस- 16, पंजाब सदाबहार, ए आर यू 2-सी और एच- 7 आदि प्रमुख है.
गोल फल- पूसा परपल राउन्ड, एच- 4, पी- 8, पूसा अनमोल, पन्त ऋतु राज, टी- 3, एच- 8, डी बी एस आर- 31, पी बी- 91-2, के- 202-9, डीबी आर- 8 और ए बी- 1 आदि प्रमुख है.
छोटे गोल फल- डी बी एस आर- 44 और पी एल आर- 1 प्रमुख है.
संकर किस्में- (Hybrid varieties) अर्का नवनीत और पूसा हाइब्रिड- 6, एम•एच बी-2, एम एच बी-3, एम एच बी-9,एम ई बी एच-11,एम ई बी एच-16, एम ई बी एच-54, एम एच बी-56 प्रमुख है.
लम्बे फल- ए आर बी एच- 201 प्रमुख है.
गोल फल- एन डी बी एच- 1, ए बी एच- 1, एम एच बी- 10, एम एच बी- 39, ए बी- 2 और पूसा हाइब्रिड- 2 आदि प्रमुख है.
बैगन के बीज की मात्रा (Brinjal Seed Quantity)
बैगन के बीज की 400 से 500 ग्राम प्रति हैक्टेयर में आवश्यकता होती है वही संकर किस्मों का 250 से 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज उपयुक्त होता है
बैगन की नर्सरी तैयार करने की विधि (Brinjal Nursery Method )
जिस खेत में नर्सरी उगानी है उस खेत की अच्छी प्रकार से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिये. पौध उगने वाली जगह पर अच्छी सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद आवश्यकतानुसार डालें ताकि पौधों की वृद्धि सही से हो सकें. बैगन के बीजों को बुबाई से पहले उनको थाइम या केप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित लेना चाहिए अगर खेत में सूत्रकृमि रोग (निमेटोड) की समस्या हो तो 8 से 10 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन 3 जी प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से खेत में डालें. इसके बाद बैगन की पौध के लिए 15 सेमी उंची 5×1 मीटर आकार की क़्यरिया बना ले. आपको बता दे कि एक हेक्टेयर में पौध लगने के लिए इस तरह की लगभग 18-20 क़्यारियो की आवश्यकता पडती है
छिड़काव विधि – अगर आप छिड़काव विधि से बैगन की पौध ऊगा रहे है तो बुवाई की सुविधा के लिये बीज मे थोडी सूखी मिट्टी या राख मिलाकर क़्यारियो मे समान रूप से बिखेर दे.
पंक्ति विधि –यदि आप बीज को पंक्तियों में बोना चाहते है तो 15 सेमी की दूरी पर 1-1 •5 सेमी की गहराई पर बीज बो दे. बुवाई के बाद गोबर की बारीक खाद की एक सेन्टीमीटर मोटी परत से क़्यारियो को ढक दें.
दोनो ही विधि मे बुवाई करने के तुरंत बाद हजारे से पानी लगाना चाहिए. एक वीक के बाद बीजो का अंकुरण शुरू होने लगता है. बीज का जमाव शुरू होने पर घास और खरपतवार को हटाते रहना चाहिए ताकि पौधों की वृद्धि ठीक प्रकार से हो सके. 4-6 सप्ताह मे पौध रोपने योग्य हो जाती है
बैगन की फसल के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Brinjal Crop )
नर्सरी डालने के बाद जिस खेत में बैगन की पौध लगानी है उस खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. बैगन की फसल के लिए खेत की 3 से 4 जुताई करें. पहली जुताई मिटटी पलटने वाले यानी डिस्क हेरो से करनी चाहिये.
बैगन की फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए खाद और उर्वरको का महत्वपूर्ण योगदान होता है. बैगन की अच्छी फसल लेने के लिए निम्नलिखित मात्रा मे प्रति हेक्टेयर की दर से खाद व उर्वरक देने चाहिये
- गोबर की खाद-200-250क़्विंटल
- नाईट्रोजन-100किलोग्राम
- फास्फोरस-50 किलोग्राम
- पोटाश-50किलोग्राम
पौध की रोपाई से करीब 20-21 पहले गोबर की सडी हुई खाद को खेत में मिलकर जुताई करें. आखिरी जुताई से पहले 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश को प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में समान रूप से बिखेर कर जुताई कर पाटा लगा दे. इसके बाद खेत में क्यारियां या नाले बना लें.
बुवाई का समय (Brinjal Sowing Time)
बैंगन की फसल को साल में तीन बार लगाया जा सकता है. जो इस प्रकार है
वर्षाकालीन फसल-नर्सरी तैयार करने का समय फरवरी से मार्च और मुख्य खेत में रोपाई का समय मार्च से अप्रेल उचित है.
शरदकालीन फसल- नर्सरी तैयार करने का समय जून से जुलाई और मुख्य खेत में रोपाई का समय जुलाई से अगस्त उचित है.
बसंतकालीन समय- नर्सरी तैयार करने का समय दिसम्बर और मुख्य खेत में रोपाई का समय दिसम्बर से जनवरी तक उचित है.
बैगन के पौध की रोपाई और दूरी
बीज बोने के चार सप्ताह (30 से 40 दिन ) या 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंचाई के बाद बैगन की पौध रोपाई के लिये तैयार हो जाती है. पौध रोपाई से पहले खेत में क्यारियाँ और सिंचाई के लिये नालियाँ बना ले. पौध की रोपाई की दूरी वैरायटी और उगाने के समय पर निर्भर करती है.
क्यारियाँ – लम्बे फल वाली किस्म के लिये 60 सेमी और गोल फल वाली किस्मो के लिये 75 सेमी की दूरी पर पंक्तिया बना ले. और फिर इन पंक्तियो मे 60 सेमी की दूरी पर पौध रोपे।
- लम्बे फल वाली किस्म- 60×60 सेमी
- गोल फल वाली किस्म- 74×60सेमी
पंजाब बहार, पूसा अनमोल जैसी अधिक उत्पादन देने वाली किस्मो को 90×60 सेमी की दूरी पर प्रतिरोपीत करनी चाहिए.
टोप ड्रेसिंग
पौध की रोपाई के करीब 20 दिन बाद और पौधों पर फूल लगने के समय 20-20 किलोग्राम नाइट्रोजन को बुरकाकर कर फसल में दो बार देना चाहिए. वही संकर किस्मों के लिए यह मात्रा 30-30 किलोग्राम रहेगी.
बैगन की सिंचाई (Irrigation in Eggplant Plants)
गर्मी की ऋतु में 4 से 5 दिन की अन्तराल पर और सर्दी की ऋतु में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए. वर्षा ऋतु में सिंचाई आवश्यकतानुसार करें.
खरपतवार से बैगन की फसल को कैसे बचाएं ?
बैगन की फसल को खरपतवारों से बचाना बहुत ही आवश्यक है. वर्षा ऋतु की फसल मे अन्य फसलो की अपेक्षा खरपतवार अधिक निकलते है. अधिक पैदावार के लिए प्रारम्भिक अवस्था मे ही खरपतवार को निकाल देना चाहिए. वर्षाऋतु की फसल मे 3-4 निराई गूडाई और करनी चाहिये.
बैगन के फलों की तुड़ाई – Harvesting of brinjal
बैगन के फलों की तुड़ाई (Harvesting of brinjal) बैगन की पौध की रोपाई करने के 70-80 दिन बाद फल मिलने शुरु हो जाते है. जब बैगन के फल बड़े और रंग आने के बाद उसे तोड़ लेना चाहिए नहीं तो फलों का रंग फीका पड़ जायेगा. साथ ही फलों में बीज भी सख्त हो जाते है. जिससे मंडी में अच्छा भाव नहीं मिलता. फल लगने के 10 दिन बाद आप उसे तोड़ सकते है. फलों को तोड़ कर छायादार स्थान पर रखना चाहिए. जिससे बैगन की क्वालिटी पर फर्क नहीं पड़ेगा.
बैगन की पैदावार (Yield of Brinjal)
बैगन की औसतन पैदावार 200-250 क़्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है. पंजाब बहार, पूसा अनमोल , पूसा क्रांती, पन्त बैगन 129-5 जैसी किस्मो की उपज लगभग 400 क़्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है.
बैगन की फसल मे लगने वाले रोग और कीट और उनकी रोकथाम (Insects and Disease Control)
हरा तेला, मोयला, सफेद मक्खी और जालीदार पंख वाली बग
ये कीडे पौधों की पत्तियों के निचले हिस्से और पौधे के कोमल भाग से चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं जिसकी वहज से उत्पादन पर गहरा असर पड़ता है
रोकथाम
इन कीड़ों की रोकथाम के लिए डाईमिथोएट 30 ई सी या मैलाथियान 50 ई सी या मिथाईल डिमेटोन 25 ई सी कीटनाशकों में से किसी एक की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से फसल पर छिड़काव करें. इस छिडकाव को 15 से 20 दिन बाद आवश्यकतानुसार फिर करें.
फल और तना छेदक
फसल पर इस कीट का प्रकोप होने से पौधों की शाखाएं मुरझा कर नष्ट हो जाती हैं और फलों में छेद हो जाते है. इसकी वजह से फलों की विपणन गुणवत्ता कम हो जाती हैं.
रोकथाम
इस रोग से प्रभावित पौधों को खेत से उखाड़ का नष्ट कर देना चाहिए. फल बनने पर कार्बोरिल 50 डब्ल्यू पी 4 ग्राम या फार्मेथियान 50 ई सी 1 मिलीलीटर या एसीफेट 75 एस पी 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए. आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन बाद इस प्रक्रिया को दोहराएं. दवा छिडकने के 7 से 10 दिन बाद फल तोड़ने चाहिए
छोटी पत्ती रोग
यह बैंगन का एक माइकोप्लाज्मा जनित विनाशकारी रोग हैं. इस रोग से प्रभावित पत्तियां छोटी होने के साथ गुच्छे के रूप में तने के ऊपर उगी हुई सी दिखाई देती हैं. पूरी तरह से इस रोग प्रभावित पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है. इस प्रकार के पौधों पर फल नहीं आते है.
रोकथाम
इस रोग से प्रभावित पौधे को उखाडकर नष्ट कर देना चाहिए जिससे दूसरे पौधे प्रभवित न हो. यह रोग हरे तेले (जेसिड) द्वारा फैलता हैं. फसल को इस रोग से बचने के लिए एक मिलीलीटर डाईमेथोएट 30 ई सी प्रति लीटर पानी की दर से खेत में छिड़काव करना चाहिए तथा 15 दिन बाद यही प्रक्रिया दुबारा दोहरानी चाहिए.
झुलसा रोग
इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों पर विभिन्न आकार के भूरे से गहरे भूरे रंग के धब्बे बन आ जाते है. धब्बों में छल्लेनुमा धारियां दिखने लगती हैं
रोकथाम
फसल को इस रोग के प्रकोप से बचने के लिए मैन्कोजेब या जाईनेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें. इस छिड़काव को आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल करें.
आद्रगलन (डेम्पिंग ऑफ)
इस रोग का प्रकोप पौधे की छोटी अवस्था में आता है. इस रोग से प्रभावित पौधे का जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़कर कमजोर हो जाता है. पौधे गिरकर मरने लगते है. यह रोग भूमि एवं बीज के माध्यम से फैलता हैं.
रोकथाम
फसल को इस रोग से बचाने के लिए बीजों को 3 ग्राम केप्टॉन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाईरम या केप्टॉन 4 से 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से भूमि में डालें. नर्सरी के आसपास की भूमि से 7 से 10 इंच उठी हुई बनायें.
बैंगन की खेती – FAQ
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