Taro Farming : अरबी (घुइयाँ) एक कंद वर्गीय सदाबहार फसल है, जिसके कंद और पत्तों में अनेक औषधीय गुण मौजूद जाये जाते है, जिसकी वजह से अरबी के कंद और पत्तों की डिमांड देश-विदेश में बहुत तेज़ी से बढ़ रही है. देश-दुनिया में अरबी की माँग को पूरा करने के लिए अरबी की खेती किसानो के लिए फायदे का सौदा हो सकता है. यदि आप भी अरबी की खेती (Taro Cultivation) करने की सोच रहे है, तो आपके लिए कृषि दिशा की यह पोस्ट काफी महत्वपूर्ण होगी। इस लेख में आपको अरबी की खेती कैसे करें तथा अरबी की खेती कब की जाती है, इसके बारे में जानकारी दी जा रही हैं।
कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली अरबी की खेती (Taro Root Farming) साल में दो बार रबी और खरीफ दोनों सीजन में कर सकते है. अरबी एक ऐसी कंदीय फसल है जिसको सब्जी के साथ-साथ औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है. भारत के पंजाब, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, असम, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और तेलंगाना आदि प्रदेशों में मुख्य रूप से की जाती है. अगर आप खरीफ सीजन में अरबी की खेती करना चाहते हैं तो बेहतर उपज के लिये इन कृषि कार्यों का खास ध्यान रखें.
अरबी की खेती (Taro ki Kheti)
उष्ण एवं उप-उष्ण क्षेत्रों में उगाई जाने वाली अरबी को दुनिया भर में अरुई, घुइयां, कच्चु, अरवी, घूय्या, कोचई इत्यादि नामों से जाना जाता हैं. जिसका वानस्पतिक नाम कोलोकेसिया एस्कुलेन्टा है. अरबी खाने के फायदे स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभदायक हो सकते है क्योकि अरबी में स्टार्च के साथ विटामिन ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन आदि पोषक तत्व प्रमुख रूप से पाए जाते है. अरबी के पत्ते खाने के फायदे कैंसर, ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां, शुगर, पाचन क्रिया, त्वचा आदि रोगों में हैरान करने देने वाले है. इसलिए भारत में अरबी (घुइयाँ) को खासतौर पर पंसद किया जाता है. यदि आप भी अरबी की खेती करने इच्छुक है तो आप इस आर्टिकल में अरबी की खेती कैसे करें (Arabic Farming in Hindi) और घुइयाँ की खेती कब होती है, इसके बारे में जानेंगे.
अरबी की व्यावसायिक खेती कैसे करें?
Arbi ki kheti kaise kare : अरबी की विकसित किस्मों के साथ गर्मी और बारिश दोनों सीजन में अरबी (घुइयाँ) की खेती की जा सकती है. आसानी से मिलने वाली अरबी (घुइयाँ) सब्जी के रूप में बेहद लोकप्रिय है. अगर आप भी अरबी फार्मिंग करना चाहते है तो यहा जानिए Taro Cultivation के लिए क्या क्या जरुरी है-
जलवायु
- अरबी की खेती के लिए अधिकतम 35 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान उचित माना गया है.
- अरबी को बारिश और गर्मी दोनों मौसम उगाया जा सकता है.
- अधिक गर्म और सर्द जलवायु इसकी फसल के लिए हानिकारक हो सकती है.
- सर्दियों के मौसम में गिरने वाले पाले से अरबी के पौधों की वृद्धि रुक जाती है.
भूमि का चयन
- वैसे अरबी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में हो जाती है लेकिन जैविक तत्वों से भरपूर रेतली दोमट मिट्टी अरवी की फसल के लिए सर्वोत्तम मानी गई है.
- घुईया की खेती के लिए पी.एच मान 5.5 से 7 के बीच का होना चाहिए.
- अरबी की वैज्ञानिक खेती हेतु उचित जल निकास वाली भूमि होनी चाहिए
खेत की तैयारी
- अरबी की खेती के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने हाल से करें ताकि खेत में मौदूज खरपतवार और कीट नष्ट हो जाएँ.
- खेत तैयार करते समय 18 से 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 4.5 किलो ट्राईकोडर्मा प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें.
- खेत में खाद डालने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर पानी छोड़ दें.
- पलेवा के 7 से 8 दिन बाद खेती की एक बार गहरी जुताई कर दें ताकि गोबर की खाद मिट्टी में मिल जाये.
- अरबी की बुवाई से पहले कल्टीवेटर से खेत की 2-3 बार आडी-तिरछी जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाकर पाटा से समतल कर लें.
अरबी की उन्नत किस्म (Varieties)
- इंदिरा अरबी 1:- इस वेरायटी की अरबी करीब 210 से 220 दिनों में तैयार हो जाती है इसके पत्ते मध्य आकर के और हरे रंग के होते है तथा तने का ऊपरी भाग का रंग नीचे बैंगनी तथा बीच में हरा होता हैं.
- नरेन्द्र अरबी:- इस किस्म की अरबी 170 से 180 तैयार हो जाती है इसके पत्ते मध्यम आकार के तथा हरे रंग के होते हैं. इसकी औसतन उपज 12 से 15 टन प्रति हेक्टेयर हैं .
- बिलासपुर अरूम:- यह 180 से 190 दिनों तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 30 टन प्रति हेकटेयर है.
- आजाद अरबी:- यह वैरायटी 130 से 135 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 28 से 30 टन प्रति हेक्टेयर है.
- अरबी की अन्य वैरायटी:- राजेंद्र अरबी, व्हाइट गौरैया, पंचमुखी, मुक्ताकेशी
अरबी की खेती लिए बीज की मात्रा
अरबी की बुवाई के लिए एक एकड़ खेत के लिए अंकुरित कंद 4 से 5 क्विंटल की आवश्यकता होती है
अरबी के बीज का उपचार
बुवाई करने से पहले अरबी की कंदों को कीटनाशक से उपचारित करना चाहिए ताकि खेत की मिट्टी से लगाने वाले रोगों को रोका जा सके. अरबी की कंदों को उपचारित करने के लिए बाविस्टीन का उपयोग कर सकते है.
अरबी की बुआई का समय
अरबी की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए कंदों की बुवाई ठीक समय पर करें, जिसकी जानकारी इस प्रकार है-
- खरीफ के सीजन में अरबी की बुवाई
- बुआई का समय:- 1 मई से 30 जून के बीच
- फसल अवधि:- 150 से 220 दिन
- जायद के सीजन में अरबी की बुवाई
- बुआई का समय:- 1 फ़रवरी से 30 अप्रैल के बीच
- फसल अवधि:- 150 से 220 दिन
अरबी बोने का तरीका
- क्यारी बनाकर :- अरबी की बुवाई के लिए तैयार खेत में पंक्ति से पंक्ति दूरी 60 सेमी.रखते हुए क्यारियों को तैयार करें, पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी. और 5 से 7 सेमी. की गहराई पर कंदों की बुवाई करें.
- मेड़ बनाकर:- तैयार खेत में 45 सेमी. की दूरी रखते हुए मेड़ बनाये. अरबी की बुवाई के लिए तैयार खेत में बनाई गई मेड़ के दोनों किनारों पर 30 सेमी. की दूरी पर अरबी के कंदों की बुवाई कर दें.
अरबी की खेती मे उर्वरक व खाद प्रबंधन
अरबी की फसल से बढ़िया उत्पादन लेने के लिए मृदा परीक्षण के अनुसार खाद और उर्वरक का उपयोग करें. फसल के लिए खेत तैयार समय 18 से 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 4.5 किलो ट्राईकोडर्मा प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें. उसके बाद 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दर से रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है. जिसमें से बुवाई करते समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में डालें. शेष नाइट्रोजन को दो बराबर भागों मे बांटकर खाद का पहला भाग बुवाई के 30-35 दिनों बाद और बाकी बचा खाद 70 दिनों के बाद निराई-गुड़ाई करते समय फसल में लगा दें.
खरपतवार नियंत्रण
अरबी की खेती से उच्च क्वालिटी का उत्पादन प्राप्त करना है तो आपको फसल का विशेष ध्यान रखना होगा. खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें, अगर खेत में अधिक खरपतवार होने की स्थिति में रासायनिक विधि का प्रयोग कर सकते है.
अरबी फसल सिंचाई
अरबी की बुवाई के तुरंत बाद खेत की सिचाई करें जिससे अंकुरण क्षमता बढ़ेगी. कंदों के अंकुरण होने तक खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखें. गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली अरबी के लिए अधिक पानी की जरुरत होती है. गर्मी के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए 7 से 8 दिन के अंतराल में सिंचाई की आवश्यकता होती है. वही अगर बारिश के मौसम में अरबी की बुवाई के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है. बारिश के समय 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करने से काम चला जाता है. बारिश होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें.
बीमारीयां और रोकथाम
अरबी की फसल में पत्ता झुलस रोग, लोमाई, बोबोन वायरस, दाशीन का चितकबरा रोग, गांठों का गलना, कीटों का प्रकोप अधिक रहता है, इनसे बचाव के लिए आप अपने क्षेत्र के कृषि विशेषज्ञ संपर्क कर सलाह ले सकते है.
अरबी की खुदाई (Harvesting Taro)
अरबी की खुदाई उसकी वैरायटी पर निर्भर करती है, सामान्यतः अरबी की फसल 120 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है. अरबी के कंदों को ठीक से पक जाने के बाद ही खुदाई करें और उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेजें.
अरबी की फसल से उत्पादन
अरबी की पैदावार उसकी किस्म और खेती करने के तरीको पर निर्भर करती है, सामान्यतः अरबी की औसतन पैदावार लगभग 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. स्थानीय बाज़ारों में अरबी का भाव ऊपर नीचे रहता है. ऐसे में अगर फसल का अच्छा भाव मिलता है तो प्रति एकड़ 1.5 से 2 लाख रूपए की कमाई हो जाती हैं.
अरबी की खेती कब और कैसे करें इसकी सम्पूर्ण जानकरी इस लेख में दी गई है, हम उम्मीद करते है कि अरबी की उन्नत खेती कैसे करें (How to cultivate Taro) से संबंधित जानकारी किसान भाइयों को आपको पसंद आई होगी. यदि इस लेख से सम्बंधित आपका कोई सवाल है तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में हमसे पूछ सकते है.
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